सांवरी का सफ़र

सांवरी का सफ़र

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सांवरी एक सांवले रंग की लड़की थी। बचपन से ही अपने रंग को लेकर सबसे बातें सुनती आई थी, कितना अच्छा होता अगर भगवान थोड़ा इसका रंग साफ़ दे देता तो, कुछ पहना जंचता तो। कभी ताना तो कभी कोई नुस्खा, यहां तक कि उसके नाम का भी मज़ाक बनाते थे। ये तो शुक्र था भगवान का कि उसके माँ बाप को उसके सांवला होने से कोई दिक्कत नहीं थी। उनके लिए तो उनकी बेटी उनकी जान थी। उसकी माँ तो उसके रंग पर टीका टिप्पणी करने वालों से लड़ाई तक कर लेती थी। फिर अपनी सांवरी को ही समझाने लगती थी कि तू ये सब ध्यान से मत सुना कर, एक कान से सुन दूसरे से निकाल। तू बस अपनी पढ़ाई पर ध्यान दे। इतना आगे बढ़ जा की सब मजबूर हो जाएं तेरी तारीफ़ करने पर। 


सांवरी पूछती थी कि आपने मेरा ये नाम क्यों रखा, सांवले रंग के कारण ना। तब उसके पापा ने कहा कि जब वो छोटी थी तो उसकी शरारतों में उन्हें कान्हा नजर आते थे बस इसलिए उनके नाम पर तुम्हारा नाम रख दिया। सांवरी इसके बाद अपने नाम से प्यार करती थी। सांवरी बहुत कोशिश करती कि लोगों की बातों से अपना दिल ना दुखाए पर थी तो वो बच्ची ही। उसके माँ बाप के साथ के कारण उसका स्वभाव और संस्कार बहुत अच्छे थे। उसका हंसमुख स्वभाव दिल जीत लेता था सबका। पढ़ाई में भी वो बहुत अच्छी थी। पर आत्मविश्वास की बहुत कमी थी उसमें इन सब टीका टिप्पणियों के कारण से इसलिए स्टेज पर जाने से कतराती थी और ना ही लड़कों से बात कर पाती थी।

दसवीं की परीक्षा में उसके बहुत अच्छे अंक आए। अब सब लोग उससे बात करना, दोस्ती करना चाहते थे ताकि कुछ सीख सके उससे। माएँ तो अपनी बेटियों को उससे दोस्ती करने को कहती रहती थी पर अब सांवरी को उनका साथ नहीं भाता था, समय ने उसे अच्छे बुरे कि पहचान जो करा दी थी।

फिर बारवी में भी उसके बहुत अच्छे अंक आए। अब सांवरी बहुत खुश रहती थी। सब उससे प्यार भी बहुत करने लग गए थे पर इन सबके बावजूद भी उसमें आज भी आत्मविश्वास की कमी थी। सांवरी अब कॉलेज में आ गई। यहां भी वो पढ़ाई में अव्वल रहती थी पर बाकी सभी चीज़ों से जिसमें स्टेज पर जाना होता था या लोगों के सामने बोलना होता था, उसमें वो भाग नहीं लेती थी।


उसके मम्मी पापा ने उसकी ये झिझक दूर करने की काफी कोशिश की पर वो नहीं कर पाए। एक दिन उसकी क्लास में एक नई लड़की ने एडमिशन लिया। उसका नाम था उर्मिल। देखने में वो बिल्कुल भी सुंदर नहीं थी, रंग भी पक्का था और चेहरे पर बड़ा सा नीले रंग का बर्थमार्क भी था। 

उसको देख कर सांवरी ने सोचा ये तो किसी से बिल्कुल बात भी नहीं कर पाएगी अपनी शक्ल के कारण। लेकिन सिर्फ कुछ ही दिनों में सांवरी कि सोच बदल गई। उर्मिल तो हँस हँस के सबसे बातें करती थी, पढ़ाई में भी अच्छी थी और बाकी सब खेल कूद व अन्य प्रतियोगिताओं में हिस्सा भी ले रही थी।

सांवरी ये सब देख कर हैरान रह जाती थी। अब उर्मिल उसकी भी दोस्त बन गई थी। एक दिन हिम्मत कर के सांवरी ने उर्मिल से पूछ ही लिया। उर्मिल तुम मेरी बात का बुरा मत मानना लेकिन मुझे तुमसे कुछ पूछना है। उर्मिल बोली - पूछो, मैं बुरा नहीं मानूंगी।

सांवरी ने कहा, "मैं अपने सांवले रंग के कारण सिर्फ पढ़ाई तक ही सीमित रह जाती हूं। मेरा मन भी करता है स्टेज पर जाने का और सभी प्रतियोगिताओं में भाग लेने का पर मैं हिम्मत ही नहीं जुटा पाती। लेकिन तुम ये सब कैसे कर पाती हो। प्लीज़ मुझे बताओ। मैं भी अपने खोल से बाहर निकलना चाहती हूं। मैं भी खुल के जीना चाहती हूं।"


उर्मिल बोली- "कभी मैं भी तुम्हारे जैसी ही थी। मेरे माता पिता ने बहुत कोशिश की मुझे समझाने की पर मैं अपने बचपने में उन लोगों के हिसाब से ही चलती रही जिनका मेरी खुशी से कोई लेना देना नहीं था। फिर एक दिन मेरी क्लास में एक नई टीचर आई। उन्होंने कुछ दिन मुझे देखा और एक दिन अपने पास बुला कर पूछा कि तुम क्यों प्रतियोगिताओं में भाग नहीं लेती। मैंने उन्हें टालने की, इधर उधर का बहाना बनाने की बहुत कोशिश की पर वो नहीं मानी। उन्होंने मुझे कहा कि ऐसा करके में अपने आप के साथ, अपने माता पिता के साथ और अपनी क्लास के साथ नाइंसाफी कर रही हूं। वो बोली कि तुम अपनी प्रतिभा का अपमान कर रही हो, अपने माँ बाप की सारी मेहनत पर पानी फेर रही हो और अपनी क्लास को और स्कूल को मेडल्स व इज्ज़त दिलाने से पीछे हट रही हो।"


उनकी बातों ने मेरे मन को झकझोर दिया। मैंने निश्चय किया कि में अपने खोल से बाहर आऊंगी। इतना आसान नहीं था ये कर पाना लेकिन धीरे धीरे मैं खुद से प्यार करने लगी और आगे बढ़ने लगी। अब तुम्हारी बारी है, अब तुम्हें आगे बढ़ना है। अपने लिए, अपने परिवार के लिए खुश रहना है। तोड़ दो ये रंग रूप कि बेड़ियाँ और मुक्त हो कर आसमान में उड़ो। ये आसमान तुम्हारा है। लोगों का क्या है, उन्हें तो आदत है बुरा बोलने की। उन्हें कामयाबी का थप्पड़ मार कर दिखाओ।


आज ऐसे सब सुनकर सांवरी को ऐसा लगा जैसे उसके मन के ताले खुल गए हों। वो दिल से मुस्करा दी और उर्मिल के गले लगा गई। उर्मिल भी समझ गई कि अब सांवरी को सब समझ आ गया और अब वो अपने लिए बदलेगी।

अगले साल कॉलेज में अच्छा प्रदर्शन करने वाले छात्रों और छात्राओं को पुरस्कार दिया का रहा था। सांवरी का नाम इस बार सिर्फ कक्षा में प्रथम आने के लिए ही भी बल्कि सबसे ज्यादा प्रतियोगिताओं में भाग लेने के लिए भी था। 


चलो हम सब भी अपने आसमान में खुला उड़ें, बग़ैर किसी डर के और बग़ैर मन की बेड़ियों के।



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