Shailaja Bhattad

Abstract Inspirational

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Shailaja Bhattad

Abstract Inspirational

सार्थक बंधन

सार्थक बंधन

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"मुझे राखी पर वह सब मिल गया जिसकी मुझे चाह थी।"

 " मुझे भी, इस बार भैय्या ने हमारा घर उपहारों से भर दिया। मेरे लिए सोने के आभूषण, पति के लिए डायमंड रिंग, बच्चों के लिए कपड़े, खिलौने और न जाने क्या-क्या। वैसे तुम्हारे भैय्या ने तुम्हें क्या दिया। "

 "भैय्या-भाभी ने तो सारी खुशियां मेरी झोली में डाल दी। बहुत कुछ दिया। भैय्या का सिर पर आशीर्वाद भरा हाथ, भाभी का प्यार से आलिंगन, भैय्या-भाभी का बच्चों के साथ घंटों खेलना।

 भैय्या ने मेरे स्वाभिमान का पलड़ा एक बार पुनः भारी कर दिया। भैय्या का यह कहना- "कभी अपने को अकेला मत समझना।सुख में याद करो न करो दुःख में सबसे पहले मुझे ही याद करना।" सुनकर मन भर गया तभी तो देखो न आज तक दुख की परछाई ने हमें छुआ तक नहीं।

 भैय्या जानते हैं सोने चांदी से मैं अपना घर अपनी काबिलीयत से ही भर लूंगी लेकिन उसके लिए प्यार, अपनापन, बड़ों का आशीर्वाद, मन में संतोष, खुशी चाहिए और वह सब भैय्या-भाभी मुझे देकर गए। अब और कुछ चाहने के लिए बचा ही कहाँ है।"

 "सही कह रही हो तुम्हारे भाई ने तुम्हे सब कुछ दे दिया।"


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