Vijay Kumar उपनाम "साखी"

Tragedy Inspirational

4.5  

Vijay Kumar उपनाम "साखी"

Tragedy Inspirational

सच्चा दोस्त कौन

सच्चा दोस्त कौन

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राज, तरुण, महेंद्र, विनोद औऱ मुन्ना बचपन के पांच दोस्त थे। पांचों में बचपन मे बड़ी घनिष्टता थी। संयोग से पांचों का ब्लड ग्रुप समान B+ था। इनमें राज निःस्वार्थ भाव से सबकी मदद किया करता था। धीरे-धीरे समय निकलता गया। पांचों दोस्तो में पढ़ाई में आगे केवल राज और मुन्ना रह गये थे। बाकी तीन मित्रों ने पढ़ाई छोड़ दी थी। वो तीनो काम-धंधा करने लगे थे। राज एक विद्यार्थी होकर भी अभी भी सबकी मदद करता था। उसकी ख़ासियत थी वो ख़ुद दुख में रह लेता, परन्तु अपने दोस्तों को वो दुःखी नही रहने देता था। मदद कैसी भी हो, पैसे की हो, या सही सलाह देनी की वो अपना काम बख़ूबी किया करता था। वो अपने दोस्तों की नही अन्य लोगो की भी निःस्वार्थ भाव से मदद किया करता था। कॉलेज में आते-आते मुन्ना की आर्थिक स्थिति ख़राब हो गई थी। राज उसका हौंसला बढ़ाता और कहता यार सब ठीक हो जायेगा, तू बस मेहनत करता रह अंत मे विजय तेरी ही होगी। समय निकलता गया पांचों दोस्तो में राज और मुन्ना की नोकरी लग गई थी। राज का स्वभाव अब भी वैसा ही था। वो आज भी अपने मित्रो की मदद खुद ब्याज़ पर पैसा लेकर कर रहा था। मुन्ना को ये पसंद कम ही था। वो कहता था राज में तुझे दूसरों की मदद करने के लिये मना नही करता हूं, पर एकबार तू उनको परख के देख तो ले वो तेरे कितने अपने है

राज उसकी बात को हंसकर टाल देता था। सब वक़्त एक जैसा नही रहता है, एकबार राज का भी बुरा दौर आता है। घरेलू कामो से उस पर कर्ज चढ़ जाता है।

फिऱ भी उसका चेहरा सदा खिला हुआ ही रहता है। एकदिन बहुत बुरी घटना होती है, राज का स्कूल जाते वक्त एक नीलगाय से एक्सीडेंट हो जाता है। उसके सिर में चोट लगने से उसका बहुत सारा खून बह जाता है और वो बेहोश हो जाता है, वो सबकी मदद करता था, पर आज उसकी मदद के लिये कोई दोस्त नही आता है। उसके परिवार वाले उसे हॉस्पिटल ले जाते है। मुन्ना राज से 60 किमी दूर नोकरी करता है। उसे जैसे ही पता चलता है वो दौड़कर राज के पास हॉस्पिटल जाता है। राज को B+ खून की आवश्यकता होती है, परन्तु पूरे हॉस्पिटल में इस ग्रुप का खून नही मिलता है, जैसे ही मुन्ना को पता चलता वो अपना खून देने के लिये तैयार होता है क्योकि उसका औऱ राज का ब्लड-ग्रुप समान ही B+ होता है। कुछ घण्टो बाद राज को होश आता है, वो अपने पास परिवार और केवल मुन्ना को पाता है। उसके घरवाले राज को सारी बात बताते है, कैसे तेरे तीनो दोस्त तरुण, महेंद्र, विनोद आये और औपचारिकता के तौर पर तेरी तबियत पूँछकर चले गये, वो चाहते तो तुझे खून दे सकते थे क्योंकि सबको पता है, तुम तीनो का ब्लड ग्रुप समान है। राज की आंखों में मुन्ना को देखकर आंसू आ रहे थे। 5 दिन राज अस्पताल में भर्ती रहा। मुन्ना पांचों दिन उसके पास ही रहा। अब राज की आंखे खुल चुकी थी की, कौन यहां सच्चा मित्र है। कुछ दिन बाद राज पूरी तरह से स्वस्थ हो जाता है। एकदिन राज और मुन्ना शाम को खाना खाने के बाद मिलते है। दोनों मित्र टहलने के लिये निकलते है, सच्ची मित्रता की दोनों की चर्चा चलती है। मुन्ना बोलता है,

सच्चा मित्र वो नही जो पैसा देता है

सच्चा मित्र वो नही जो खाना देता है

सच्चा मित्र वो नही जो मीठा बोलता है,

सच्चा मित्र वो है जो मुसीबत में साथ देता है।

इस दुनिया मे सब स्वार्थ के रिश्ते है, केवल मित्रता का रिश्ता ही निःस्वार्थता का रिश्ता है, परन्तु आजकल इसमें भी स्वार्थ भर गया है। आज ख़ुदा मिलना सरल है, पर सच्चा दोस्त मिलना मुश्किल है। सच्चे दोस्त की पहचान मुसीबत में होती है। रक सच्चा दोस्त वो है, सबके सामने तो अपने मित्र की तारीफ़ करे, अकेले में उसके अवगुण बताये, समय-समय पर उसका सही मार्गदर्शन करें, दोस्ती कुछ इस तरह निभाये, जैसे दीपक से अंधेरा भाग जाता है। ऐसे वो मित्र के जीवन मे दीपक बनकर जले और अपने मित्र के जीवन का अंधेरा दूर करे। सच्चा मित्र उस शूल के समान है जो फूल के साथ रहकर उसकी संसारी बाधाओं से रक्षा करे।

दोस्ती हो तो कृष्ण-सुदामा सी हो, वरना दोस्ती ही न हो।

एक दोस्त की आंखों में आँसू आये, दूसरे की आंख लाल हो जाये।

एक दोस्त को कोई दुःख हो तो दूसरे दोस्त की आंखो में आंसू आ जाये।

ऐसी दोस्ती हो ज़माने में, दिये के संग बाती हो जैसे किसी दीपक में,

एक दोस्त की गर सांस रुक जाये, दूसरे की भी उसी क्षण मौत हो जाये।

मुन्ना की बाते सुनकर राज की आंखों में आंसू आ गये थे। मुन्ना भी बोलते-बोलते रो पड़ा था। दोनों मित्र गले लगकर रो रहे थे। ऐसा लग रहा था बरसो बाद जैसे कोई कृष्ण अपने सुदामा से गले लगकर रो रहा हो।


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