Ashutosh Atharv

Comedy Fantasy

4.5  

Ashutosh Atharv

Comedy Fantasy

शादी की पाठशाला

शादी की पाठशाला

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वात्स्यायन की प्रेम नगरी पाटलिपुत्र में, शादी की पाठशाला में,आप लोगों का स्वागत है।

 शादी प्रत्येक की जिंदगी में अहम महत्व रखता है। शादी से कोई तटस्थ नहीं रह सकता। कोई शादी कर खुश है तो कोई दुखी। कोई शादी करना चाहता है तो कोई तोड़ना।

 पहले समझना होगा- शादी है क्या?

 *शादी* - निजी इच्छाओं को जीवन भर निर्बाध रूप से पूरी करने की सार्वजनिक घोषणा है।

 यह दो प्रकार की होती है

1. *प्रेम विवाह* ( लव मैरिज)

2. *अनुबंध विवाह* (कॉन्ट्रैक्ट मैरिज) बोलचाल की भाषा में इसे ही अरेंज मैरिज कहते हैं ।

 प्रेम विवाह - इसमें शादी से पहले लड़का-लड़की में प्रेम होता है, लड़का-लड़की की सोच समझ और प्यार की प्रधानता होती है।

 अनुबंध विवाह - इसमें लड़का-लड़की साथ रहने का अनुबंध अपने अपने प्रेम से नाता तोड़, मां-बाप की झूठी प्रतिष्ठा और खुशी की खातिर, उनके दबाव में करते हैं। लड़का-लड़की के गुण-दोष, उनके परिवार की आर्थिक और सामाजिक स्थिति के आधार पर अनुबंध रकम जोड़ी-घटाई जाती है। उसी तरह जैसे पूजा करते समय पान के पत्ता नहीं रहने पर पंडित जी कहते हैं, आम के पत्ता पर ₹10 रख देने से पान मान लिया जायेगा, काम चल जाएगा। लड़की की लंबाई कम है तो अनुबंध राशि में पांच लाख जोङ देने पर लड़की की लंबाई बढ़ जाती है, काम चल जाता है।उसी तरह अगर लड़का काला हो तो अनुबंध राशि से दो लाख घटा देने पर लड़का गोरा हो जाता है, काम चल जाता है।

शादी में आजकल दहेज की प्रधानता हो गई है। तो समझना होगा दहेज है क्या?

 दहेज- मूलतः अनुबंध रकम है। यह वह सीमेंटिंग मैटेरियल है जो दो प्रेम विवाह (लड़का का इधर, लड़की की उधर) तोड़कर अनुबंध विवाह कराने में प्रयुक्त होता है।

 अनुबंध विवाह के लोग गीत गाते हैं-

 ना उसकी मैं, ना मेरा वो

 पर जीवन भर का बंधन है 

निभा पाया तो खुशबू है 

ना निभ पाया तो क्रंदन है।

 प्रेम विवाह के लोग गीत गाते हैं-

 मैं उसकी हूं, वो मेरा है 

मैं जिंदा हूं,वह धड़कन है 

वह शीतलता तो मैं चंदन

 मैं दातुन तो वो है मंजन 

ना निभ पाया तो दोषी मैं 

निभा पाया तो तू कारण।

अनुबंध विवाह में प्रेशर है, तो प्रेम विवाह में समर्पण है। मुझे तो लगता है कि जो मां-बाप खुद प्रेम विवाह नहीं कर पाते हैं, वही अपने बच्चों पर अनुबंध विवाह का प्रेशर, बदले की भावना से करते हैं।

मेरा एक दोस्त था, वह भी सभी की तरह 21 साल का इंतजार कर रहा था, ताकि शादी कर सके।लेकिन उसके पिताजी आईएएस की तैयारी का दबाव बनाने में सफल हो गए। इतिहास भूगोल जीके जीएस पढ़ते-पढ़ते प्री मेंस के चक्कर में ऐसा उलझा कि कब तीस साल का हो गया पता नहीं चला। कभी-कभी फ्रस्टेट होकर कहता था कि मन करता है नसबंदी का ऑपरेशन करा, प्रमाण पत्र घर भेज दे। चिढ कर कहता था,इक्सपायरी डेट पार होने के बाद भी अगर बच्चा हुआ, तो प्यार से पढ़ाकर इंजीनियरिंग की तैयारी कराऊंगा। पहले इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा की तैयारी पंचवर्षीय योजना होती थी। पहले 2 साल इंटर की तैयारी खुद से, फिर स्थानीय शिक्षक से एक साल की तैयारी, फिर पटना आ कर एक साल तैयारी,अंत में मक्का-मदीना कहलाने वाले स्थान दिल्ली, कोटा में तैयारी करने के बाद सेलेक्शन मोक्ष प्राप्ति से कम ना होता था।

मेरा तो मानना है

शादी प्रेम का बन्धन, ये सौदा हो नहीं सकता

दहेज तो एक दलदल है इसपर टिक नही सकता

बहू बेटियों के घुट घुट कर मरते देखने वालों

बिना आपके जगे ये कोढ नहीं मिट सकता।


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