Sangeeta Agrawal

Others

4.5  

Sangeeta Agrawal

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सूखा गुलाब

सूखा गुलाब

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मैं पलंग पर एक कोने में पैर सिकोड़े बैठी हुई थी। पैरों की उँगली में पहने बिछिये को इधर उधर घुमाती बैचैनी सी महसूस कर रही थी। आज मेरी सुहागरात है। अभी उम्र ही क्या थी मेरी,मात्र अठारहा साल पता नही माँ पापा को क्या जल्दी थी मेरे विवाह की जो इतनी जल्दी विवाह कर दिया गया। वह भी क्या करें हम तीन बहिनें हैं एक का विवाह करेंगे तब फिर दूसरी की शादी के लिए पैसे जोड़ पाएंगे। अच्छा लड़का मिल गया इंजीनियर है उन्हें बस सुंदर लड़की चाहिए थी और कुछ  नहीं बस इस तरह मेरा विवाह हो गया। 


दरवाज़े के बाहर कुछ आवाज़े सुनाई दी मैं थोड़ी चौकन्नी हो गयी शायद सोने के लिए नीचे बिस्तर बिछाए जा रहे थे। मेरा बैठे बैठे गला सूखने लगा इधर उधर देखा एक कौने में खिड़की के पास रखी टेबल पर पानी का जग़ और गिलास नजर आया। लगता है कोई पहले से रख गया था। पानी रखने वाले को मन ही मन धन्यवाद देते हुए मैं गिलास में पानी भर ऐसे गट-गट पी गयी जैसे न जाने कितने जन्म की प्यासी हूँ।


मुझे यह सब जेवर, भारी कपड़े निकालने का मन कर रहा था। यह सब उतार मैं अपनी केपरी और टाॅप डाल लूँ पर ऐसा कर नही सकती आज मेरी सुहागरात जो है। बिस्तर पर कुछ फूलों की पत्तियाँ बिखरी हुई थीं मैंने कमरे में चारों तरफ नज़रें घुमायी, साधारण और छोटा सा कमरा था। फिल्म में जैसे दिखाते हैं वैसी तो कोई सजावट नही थी।


फिल्मों को देख देखकर जाने कितने रंगीन सपने आँखों में बसा रखे थे। खैर…..मैंने एक लंबी सी साँस ली और फिर पैरों के बिछिये को इधर उधर घुमाने लगी तभी दरवाज़ा खोलने की आवाज़ आई......मेरे दिल की धड़कन तेजी से बढ़ने लगीं...."क्या यह आ गए..?"


नज़रें जरा सी ऊपर उठा कर देखा.... "हाँ...वही हैं".....वह मेरे पास आकर बैठ गए। उनका बहुत साधारण पर सौम्य व्यक्तित्व था। हाँ, हीरो जैसी कोई बात नही थी पर यह जब मुझे देखने आए थे तो मुझे बहुत अच्छे लगे । कम बात करते हैं, मेरी तरह बकड़-बकड़ चालू नही हो जाते। मुझे यह भी मालूम पड़ा कि इन्हे  पढने का बहुत शौक है और मुझे फिल्म देखने का। वह घूमना-फिरना ज्यादा पसंद नही करते और मुझे घूमने-फिरने का बेहद शौक है। मेरी तो तमन्ना ही यही थी, कि मैं शादी के बाद खूब घूमूँगी फिरुगीं। विवाह होते-होते मुझे यह समझ आ गया था की हम स्वभाव और शौक में एक दूसरे से भिन्न हैं। 


“कैसी हो ?”....इन्होंने बात शुरू करने के लिहाज से मुझसे पूछा। इन के पूछने पर बस मैने  ज़रा सा सिर हिला दिया। मैं ना जाने कौन सी आशंका से विचलित हो रही थी।  इन्होंने फिर पूछा....“थक गयी होंगी?”.....यह बात तो सही है थक तो मैं गयी थी। इसका जवाब भी मैंने सिर हिलाकर ही दिया। फिर बोले.... “तुम कपड़े बदलकर आराम कर लो, और कुछ भी जरूरत लगे बिना झिझक मुझे बोल देना”......यह कहते हुए इन्होंने अपनी शेरवानी में से गुलाब का एक फूल निकाल कर मुझे देते हुए कहा “तुम को मैं स्वीकार हूँ...?” मैं कुछ नही बोली बस गुलाब ले नीचे नजर करे बैठी रही। वह कुछ पल खामोशी से मुझे देखते रहे फिर बोले.....“घबराओ नही.... हम पति-पत्नी बनने से पहले एक अच्छे दोस्त बनेगें। फिर यही दोस्ती हमारे रिश्ते को मजबूत बनाएगी..... क्या तुम मुझ से दोस्ती करोगी...?” मैंने धीरे से मुस्करा कर फिर अपना सिर हिला दिया। वह भी मुस्करा दिए। मैं एक राहत सी महसूस कर रही थी..... मानो बहुत बड़ा बोझ मन से उतर गया हो।  उनके प्रति एक अलग पर सुखद एहसास मैंने महसूस किया। आप ही आप से  मुस्कराते हुए सोचने लगी इस रात को सुहागरात का नाम दूँ कि नही ?.....पता नही। पर शायद हम दोनों ने वहाँ पहला कदम रख दिया था जंहा से प्यार शुरू होता हैं।   


साल बीतते गए मैंने वह गुलाब अपनी निजी डायरी में संभाल कर रख दिया था। जिंदगी की भागा दौड़ में दोबारा उस डायरी को देखने का मौका ही नही मिला।


हम दोस्त से पति पत्नी बने और फिर बस वही बनकर रह गए। दोस्ती कब ग़ायब हो गयी पता ही नहीं चला। हमारे शौक और स्वभाव मे भिन्नता के चलते कभी-कभी लगता की धीरे-धीरे हम पति पत्नी हो कर भी दो अंजान बन गए हैं। जो रहते हैं एक ही छत के नीचे पर एक दूसरे को ठीक से जानते ही नही।


कई बरसों बाद आज मैं अपनी शादी की पुरानी साड़ियाँ निकाल रही थी। सोचा कि इनका कुछ बनवाऊँगी पड़े-पड़े यूँ ही जंग खा रही थीं। इन्ही  साड़ीयों के साथ मुझे अपनी पुरानी डायरी दिखी। मैं उसे खोल कर पन्ने पलटने लगी उसमेँ मैने  कुछ शायरी, कुछ सपने लिखे हुए थे। एक पन्ने पर चिपका "सूखा गुलाब" भी मिला जो उन्होंने सुहागरात वाले दिन मुझे दिया था। मैं उस सूखे हुए गुलाब को देख सोच में पड़ गयी। हम दोनों का रिश्ता भी इस सूखे गुलाब सा हो गया था। पुराना और बेजान पर जब मैंने उस सूखे हुए गुलाब को सूंघा तो ऐसा लगा उस गुलाब की खुशबू अभी भी बची हुई है। मैं कुछ देर उस  गुलाब को देखते हुए  बैठी रही।  फिर सब सामान समेट कर तेजी से बाहर निकल आई।


यह सोफे पर बैठे हुए  लैपटॉप पर ऑफिस का कुछ काम कर रहे थे। मैं इनके पास आकर बैठ गयी और उनका हाथ अपने हाथ मे ले लिया। दिल में हज़ारों अरमान चीखने से लगे और आँखों से आँसू निकलने लगे। यह घबरा गए बोले “क्या हुआ?"  मैं बोली.... “कुछ नही”.....फिर थोड़ा रुक कर उनकी आँखों मे झांकती हुई बोली “क्या आप मेरे दोस्त बनोगे ?”.... यह कहते हुए मैने वह सूखा गुलाब उनके सामने कर दिया। वह चौक कर बोले....“तुमने यह अभी तक संभाल कर रखा हुआ था?”.....


कुछ पल यह यूँ ही खामोश बैठे हुए उस गुलाब को देखते रहे......फिर मेरे हाथ को अपने हाथ से कोमलता से दबाते हुए वह धीरे से मुस्कुराये और हाँ मे सिर हिला दिया। मैंने एक बार फिर से वही सुखद एहसास महसूस किया। आप ही आप से  मुस्कराते हुए सोचने लगी इस बात को एक नई  शुरुआत का नाम दूँ, कि नही पता नही.....पर शायद हम दोनों ने वहाँ पहला कदम रख दिया था जहाँ से दोस्ती शुरू होती है ।🍁


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