Prabodh Govil

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टापुओं पर पिकनिक- 78

टापुओं पर पिकनिक- 78

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अद्भुत ! अकल्पनीय ! अविश्वसनीय ! ऐसा भी होता है कहीं ?

कचरू के हाथ से तो ट्रे गिरतीगिरती ही बची। बीयर की बोतल उसने झट से लपक कर बगल में दबा ली, वरना वो ट्रे में से छिटक कर नीचे गिरती और सारे में कांच के टुकड़े बिखर जाते।

ट्रे और बोतल झट से नीचे टेबल पर रख कर कचरू ने एक बार फ़िर से दोनों हाथों से अपनी आंखों को मला और लगातार टुकुरटुकुर देखता रहा।

अरे ! हूबहू वही।

वही लड़का जिसके फोटो का स्क्रीनशॉट टीवी पर से लाकर कचरू ने आर्यन साहब को दिखाया था वो तो ख़ुद आर्यन साहब के हाथ में हाथ डाले उनके साथ ही बिस्तर पर बैठा हुआ है ! चमत्कार।

जितनी देर में कचरू नीचे कैफेटेरिया में जाकर पिज़्ज़ा बनवा कर लाया उतनी सी देर में दस लाख रुपए का ईनामशुदा छोकरा किसी जादू से आकर आर्यन साहब की बगल में आ बैठा ?

सॉरी ! अब उसको छोकरा बोलने का नईं। वो तो अपने साहब का कोई पहचान वाला लगता है।

अब समझा साहब का सारा नाटक।

कचरू सोचने लगा कि आर्यन साहब को पहले से ही सब मालूम होएगा कि उनका दोस्त उनके पास आने वाला है इसी से आज वो काम पर नहीं जाकर सुबह से इधर बैठे थे।

उसने एक बार आर्यन और उसके दोस्त आगोश को एक ज़ोरदार सैल्यूट मारा फ़िर झटपट और नाश्ता लाने के लिए नीचे निकल गया।

ये सचमुच बड़े आश्चर्य की बात थी कि कमरे की घंटी सुनकर जब आर्यन ने उठ कर दरवाज़ा खोला तो उसने सामने आगोश को खड़े पाया।

वह हतप्रभ रह गया। एक सुखद आश्चर्य उसे हुआ।

कोई सूचना, कोई खोज- खबर उसे पहले से नहीं थी आगोश के बारे में। पर उसका दिल काम में नहीं लगा। आज पहली बार उसने बिना बात के काम से छुट्टी की थी और दिन भर होटल के कमरे में अकेला पड़ा- पड़ा वो यही सोचता रहा था कि हो न हो, आगोश आयेगा !

यदि वो घर से भाग गया है, फ़ोन नहीं उठा रहा है, दोस्तों और पुलिस को नहीं मिल रहा है तो फ़िर आर्यन को न जाने क्यों, एक भरोसा सा था कि आगोश उससे संपर्क ज़रूर करेगा... और इंशाअल्लाह, वो तो ख़ुद चला आया।

आर्यन से भी बड़ा अचंभा तो उस लड़के कचरू को हुआ था कि थोड़ी देर पहले जिस लड़के को उसने टीवी पर देखा वो पलक झपकते ही ख़ुद सामने आ बैठा।

ये कचरू भी कहीं कोई सिद्ध पुरुष तो नहीं ?

आर्यन ने खाना रखवा कर कचरू को वापस नीचे भेज दिया और फिर आगोश के सामने अपने सवालों व शंकाओं की झड़ी लगा दी।

आगोश ने उसे सब बताया कि क्या हुआ, कैसे हुआ, क्यों हुआ।

लेकिन ऐसा क्या हुआ कि तूने एकाएक घर ही छोड़ दिया ? आर्यन ने पूछा।

आगोश बोला- मैंने घर एकाएक नहीं छोड़ा। तुम सब लोग तो बहुत पहले से ही जानते हो कि मैं घर से अलग होने की प्लानिंग कर ही रहा था। मधुरिमा के घर में कमरा किराए से लेकर मैंने इसकी शुरुआत भी कर दी थी।

फ़िर अब तो मैंने अपनी कंपनी बना कर जापान में उसका ऑफिस भी शुरू कर दिया था। और आज तुझे वो जगह भी दिखा दूंगा जो मैंने यहां मुंबई में ले ली है।

आर्यन हाथ में पकड़ा हुआ गिलास थामे आश्चर्य से आगोश को देखता रह गया।

ले, मैं तो यहां रहने का ठिकाना बनाने की बात सोचता ही रह गया और तूने यहां भी झंडा गाढ़ दिया ? आर्यन बोला। आर्यन ने उसे बताया कि अब उसकी ज़्यादातर शूटिंग यहीं होती है तो होटल या गेस्ट हाउस से कब तक काम चलता।

लोगों के पास पेइंगगेस्ट बन- बन कर भी मैं ऊब गया। आर्यन बोला, अब बता, तूने कहां ठिकाना बनाया है ?

फ़िक्र मत कर, मैंने तेरी चाल देख कर ही रास्ता बनाया है। आगोश बोला।

लेकिन यार, तुझे घर में कहीं भी आने- जाने से वैसे भी कौन रोक रहा था। मेरी समझ में ये बात नहीं आई कि तूने घर से भागने की प्लानिंग में ये पुलिस का चक्कर क्यों पाल लिया ? आर्यन ने किसी भोलेभाले बच्चे की तरह पूछा।

बेटा सब समझाऊंगा तुझे। तू आराम से खाना खा। फ़िर हम चलते हैं। तुझे सबसे पहले तो तेरा नया घर और मेरा मुंबई ऑफिस दिखाता हूं। आगोश चहक कर बोला।

आर्यन को हैरानी हुई कि वहां घर में मम्मी- पापा का बुरा हाल है, यार- दोस्त सब इसे तलाशने में हलकान हो रहे हैं, शहर की पुलिस इसे ढूंढने में हाथ धोकर पीछे पड़ी है, मीडिया इसके मिलने पर दस लाख रुपए के ईनाम के इश्तहार छाप रहा है और ये श्रीमान जी यहां इत्मीनान से अपने ऑफिस और घर के लिए नया आशियाना ढूंढते घूम रहे हैं। जवाब नहीं इसका भी।

देर रात को दोनों वापस लौट आए।

आर्यन को वो जगह बहुत पसंद आई। नीचे एक ऑफिस हॉल और केबिन था और ऊपर खूबसूरत मगर छोटा सा फ्लैट। बिल्कुल सागर किनारे।

आगोश जानता था कि आर्यन का साठ प्रतिशत काम गोरेगांव की फिल्मसिटी में ही होता है इसलिए इस बात का पूरा ख्याल रखा गया था कि जगह वहां से ज़्यादा दूर न हो।

न जाने कब और कैसे आगोश ने ये सब कुछ जान लिया और इतना माकूल बंदोबस्त भी कर लिया। हो न हो, ये सब उस ट्रेनिंग कोर्स का ही कमाल है जिसके लिए आगोश लगभग एक साल तक दिल्ली में रहा और तेन के साथ- साथ अन्य लोगों के संपर्क में भी रहा।

आज डिनर के लिए आर्यन ने डायरेक्टर साहब को मना करवा दिया। उन्हें थोड़े में सब बता भी दिया कि आज क्या और क्यों हुआ।

कचरू ने भी सारी रामकहानी उन तक पहुंचा दी थी।

तो अब रात थी, शराब थी, और दोनों दोस्त थे।

आर्यन जानता था कि आगोश पीकर ही होश में आयेगा और बात मतलब की करेगा होश खो जाने के बाद !

ऐसा ही हुआ।

आगोश ने आर्यन को जापान में तेन के साथ- साथ मधुरिमा के साथ गुजरी आपबीती सुनाई।

क्या सोच रहा है ? आर्यन को किसी संशय में चुपचाप पड़े देख कर आगोश बोल पड़ा।

मैं सोच रहा हूं कि ये लड़का कचरू कोई न कोई पहुंची हुई आत्मा है। आर्यन ने कहा।

अरे। पर तुझे कैसे मालूम ? आगोश को हैरत हुई।

अब देख न, मैं इतने दिनों से उलझन में था। तेरी खबर न मिलने की खबर अलग से परेशान किए हुए थी। यहां तक कि आज तो मेरा मन काम पर जाने के लिए भी तैयार नहीं था। मैं दिन भर न जाने किस उधेड़ बुन में यहां बैठा रहा। पर इसने यहां आकर टीवी से तेरी फोटो का स्क्रीनशॉट लाकर मुझे थमा दिया जबकि ये तुझे जानता तक नहीं था।

आगोश मुंह बाए देखता रह गया।

और तुझे पता है, ये है कौन ?

मुझे कैसे पता होगा ? आगोश बोला।

ये एक लावारिस आत्मा है। बेचारा गांव की एक औरत को कचरे के ढेर पर पड़ा मिला था। उसी ने इसे पालपोस कर बड़ा किया। ये उसे मौसी कहता है। और उस मौसी की कलाकारी देखो, इसे बड़ा तो कर दिया, अपने पैरों पर खड़ा भी कर दिया पर इसका नाम रखा कचरू। कह कर आर्यन ज़ोर से हंसा।

कचरू ? क.. च.. रू ? ? कचरे में मिला कचरू, कचरे में मिला कचरू.. कचरे में पड़ा कचरू... आगोश गाता हुआ उठ कर नाचने लगा।

आर्यन बोला- नाच मत।

क्यों ?

हां नाच मत, नाचते नहीं हैं।

क्यों !

कचरू आ गया तो वो भी नाचने लगेगा...वो रो भी सकता है। वो पागल भी हो सकता है... कचरू पागल, पागल कचरू। कचरू पगला रे। आर्यन ज़मीन पर बैठे- बैठे ताली बजाने लगा और गोल- गोल घूमने लगा।

खाना खाते- खाते उन्हें रात के दो बज गए।

होटल का एक रूमब्वॉय आकर जब बर्तन समेट ले गया तो आगोश संजीदा होकर बैठ गया।

आर्यन भी तकिए का सहारा लेकर अधलेटा सा हो गया।

दोनों बातें करने लगे।

आगोश का सारा प्लान सुनकर आर्यन ने दांतों तले अंगुली दबा ली।


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