टीस

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राजेश की शादी को कुछ दिन ही हुऐ थे, आफिस में हाफ डे था तो वो मुझसे कहने लगा चल नई मूवी देखने चलते हैं, तेरी भाभी को भी उसके आफिस से ले लेते हैं, रात का डिनर भी बाहर ही कर लेंगे।

विनीता भाभी को आफिस से लिया और फिर राजेश ने कार रास्ते में पैट्रोल पंप की तरफ मोड़ ली, हांलाकि गाड़ी में पैट्रोल था, पर नई गाड़ी को घुमाने का शौक पूरा कर रहा था।

" 200 का पैट्रोल डाल दे भाई।" राजेश ने पैट्रोल पंप वर्कर से कहा।

"ये तुम्हारा स्कूटर नहीं है जो दो सौ का पैट्रोल डलवा रहे हो, भैया एक हजार का पैट्रोल डालो।" अचानक विनीता भाभी की आवाज सुन कर हम दोनों दंग रह गऐ।

"क्या बकवास कर रही हो तुम, और वो भी अजय के सामने।" तैश में राजेश बोल उठा।

"राजेश प्लीज़, दिमाग को शांत रख।" माहौल को शांत करने की कोशिश करते हुऐ मैं बोला, "भाभी ये आप क्या बोल रही है ?"

" आपको नही पता भैया, इस कार के लिऐ पैसे का जुगाड़ कैसे किया मेरे पापा ने, कितनी ही रातें बेचैनी में जागते देखा मैनें उन्हें, जब भी इस कार में बैठती हूँ वही बेचैनी महसूस करती हूँ, दहेज में कार लेने वालो की जेब में इतना पैसा तो निकलना ही चाहिऐ पैट्रोल डलवाने के लिऐ।" एकदम ही वो बोल उठी।

 मैं कुछ बोलना तो चाहता था पर शब्द गले में ही अटक गऐ कहीं, बाहर सड़क पर गाड़ियां दौड़ती ही जा रही थी।


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