Sangita Tripathi

Abstract

4.1  

Sangita Tripathi

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तुम्हारे बगैर

तुम्हारे बगैर

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हाँ ये सही हैं तुम्हरे बगैर मैं कुछ नहीं हूँ आकाश.....पंद्रह साल हो गये हमें साथ रहते..... पर लगता हैं कल की बात हैं.... तुम अपने मित्रो, अपने काम में मस्त रहते हो... तुम्हारी दुनिया में मेरे लिए बहुत कम स्थान हैं.. पर मेरी तो दुनिया ही तुम्ही से शुरू होती हैं ...काश तुम समझ पाते.। 


कम उम्र में विवाह हुआ था। तुम्ही में जिंदगी के सारे रिश्ते देखे... तुम्ही में रम कर मैं अपना मैं भूल गई..... कई बार चोट खाई अहम् की... पर फिर दिल से मजबूर हो जाती हूँ... 

काश कभी तुम भी ये कहते की मेरे बिना तुम नहीं....पर तुम कैसे कह सकते हो तुम तो मर्द हो.... और प्रैक्टिकल भी हो। मेरी तरह भावनाओं में डूबे मूर्ख नहीं...। मै कब तुम्हारे मापदंड में खरी उतरूंगी नहीं जानती। क्योंकि माप दंड के मायने रोज बदलते हैं.... कहते हैं ना कई बार पति पत्नी पूरी जिंदगी दो किनारें ही रह जाते हैं... मै किनारा नहीं बनना चाहती हूँ। मै नदी बन समुन्द्र में मिल जाना चाहती हूँ.... 


काश ! कभी चाय पीते हुए हम भी ठहाके लगा हँसते, पर तुम्हारी सभ्रांत दुनिया में ये अशिष्टता है.... कभी अखबार और सिगरेट को छोड़ तुम मुझे भी पढ़ते.... सब कुछ जान लेने की तुम्हारी जिज्ञासा सिर्फ एक जगह क्यों दम तोड़ देतीं हैं.... कभी मुझे जानने की कोशिश क्यों नहीं करते... इस सर्द रिश्ते ने मेरे अरमान भी ठन्डे कर दिये.... तुम घर में रहोगे तो रोहन और ऋचा भी चुप रहते हैं। कभी अचानक आ कर इन बच्चों को देखो.... कितना धमाल मचाते हैं... पर तुम्हे देख शांत हो जाते हैं डिसिप्लिन में जो रहना हैं .... खुल कर इन्हे जीने दो.... घर को घर रहने दो पाठशाला मत बनाओं। मै तो तुम्हारे अनुरूप ढल गई, पर बच्चों को उनके विस्तृत आसमां में उड़ने दो। ऋचा को उसकी मंजिल तक पहुँचने दो.... क्योंकि कहीं तुम्हारे जैसा हमसफ़र उसे मिला, तो वो भी उड़ नहीं पायेगी.... जी लेने दो उसे अपने सपने...... डायरी लिख ही रही थी तभी.... 

              घंटी की आवाज सुन रति ने दरवाजा खोला... आकाश खड़े थे..कुछ बुझे से.... .वे फ्रेश होने चले गए... उनका बुझा चेहरा कुछ अनहोनी ही कह रहा। .. मन किया पुछू क्या बात हैं.। ... पर हिम्मत नहीं हुई... खाना खा सब सोने चले गए..रात आकाश को तेज सर दर्द हुआ ....रति रात में अस्पताल ले गई.... आकाश को... हाई ब्लड प्रेशर हो गया था... पर अब सब ठीक हैं .... सुबह हो गई आकाश के बेड के सामने बैठे बैठे कब रति की आँख लग गई पता नहीं चला... आँखे खुली तो देखा आकाश की आँखों में आँसू थे...। .रति का हाथ पकड़ वे बोले .. रति तुम्हरे बगैर मै जी नहीं सकूंगा ........ तभी डॉ. आ गए... बोले अभी सब ठीक हैं। पर आप इनको खुश रखें...और सब ठीक रहा तो कल आकाश जी को डिस्चार्ज कर दूंगा.... आकाश ने बच्चों के बारे में पूछा तो रति बोली.. बच्चे घर में हैं पड़ोसन को बोल दिया था उनके पास रहने को। डॉ.के जाने के बाद रति ने आकाश को देखा.... खुल कर जिओ आकाश .. अपने को बांधो मत.... 

 अस्पताल से डिस्चार्ज करा रति, आकाश को घर ले आई.. ..सहारा दे उसे अंदर ले आई . बेतरतीब घर देख फिर रति को घबराहट लगी की अब बच्चों को डांट पड़ेगी पर.. आश्चर्य चकित थी .. जब देखा आकाश ने कहा अरे घर हैं कोई होटल थोड़ी ना... जो हर समय संवरा हुआ होगा... और प्यार से बैडरूम में चला गया.. .. सुबह जब रति की नींद खुली तो घर बहुत शांत था। बच्चे स्कूल जा चुके थे  उसने आकाश से पूछा बच्चों को टिफ़िन किसने दिया... आकाश बोला पड़ोसन भाभी आई थी वहीं बच्चों का टिफ़िन और हमारा नाश्ता दे गई हैं.... तुमने उठाया क्यों नहीं.... तुम इतनी थकी थी की मुझे लगा तुम्हारी नींद पूरी हो जाये.......आपकी तबियत कैसी हैं.... मै ठीक हूँ रति... रति फ्रेश हो चाय बना लाई....आकाश .. बोले बालकनी में ही पीते हैं ..... आज आकाश के हाथ में सिगरेट और अख़बार नहीं था.... रति को देख बोले अब मै अख़बार शाम को पढ़ा करूँगा और ये एक घंटा तुम्हारे साथ बिताया करूँगा ......अब मै अपने खोल से बाहर आ गया हूँ... बिंदास जिंदगी जीने के लिए.... रति आकाश का ये रूप देख खुश हो गई .. 


आकाश .. बोले ... तुम्हारी डायरी पढ़ी.थी.. .. क्या मै किसी को खुश नहीं रख पाया... नहीं ऐसी बात नहीं हैं बस आप का नज़रिया कुछ अलग हैं....रति बोली । रति के हाथ पर अपना हाथ रख आशीष बोले...पंद्रह साल जरूर गुजर गए... पर अब तुम्हारा और बच्चों का मन पढ़ना आ गया...अब शिकायत नहीं होंगी तुम्हें.मुझसे ...तुम्हारे बगैर मै कुछ नहीं रति......। इस झटके ने मेरा जिंदगी के प्रति नज़रिया बदल दिया...। और रति मुस्कुरा दी....

बरसों की इच्छा यूँ पूरी हो गई...... एक नया सवेरा..नये जज्बातों के साथ उदय हो रहा था । 

              



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