Rohit Sharma

Abstract

4.6  

Rohit Sharma

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तवायफ़

तवायफ़

30 mins
639


Part - I

 

शीला आज भी सिहर उठती है, जब जब सोचती है उस रात के बारे में, कहते है ना कि किसी लड़की के लिए उसकी पहली रात (सुहागरात) बहुत अनोखी और नई रात होती है,

पर शीला को क्या पता था कि उसकी ज़िन्दगी की पहली रात उसकी सुहागरात ही उसके लिए मनहूस रात की तरह बीतेगी, पर अब क्या किया जाए....!

 

यूँ तो कहने को आज भी शीला की हर रात सुहागरात होती है, पर उन हर रातों को उसका पति अलग अलग होता है...!

 

जी हाँ एक काला सच शीला की ज़िन्दगी का....!

 

कितनी हँसमुख और कितनी भोली थी शीला, यथा नाम तथा गुण बहुत ही शालीन और शांत स्वभाव की लड़की, उम्र के 19वें बसंत में उसके हाथ पीले कर दिए गए, क्या करें कहते है ना कि अंगूर की बेल और गरीब की बेटी कितनी जल्दी बढ़ जाती है किसी को पता नहीं चलता....!

 

दीनानाथ काका की एकलौती बेटी शीला, रंग हल्का दूधिया और माथे पर दाएं तरफ जन्मजात काला टीका, उसके रूप में चार चाँद लगाता है, दीनानाथ उर्फ़ दीनू काका एक मजबूर बाप जिसने केवल मिट्टी, गारे और पत्थर को तोड़कर अपनी ज़िंदगी गुज़ार दी...!

 

हाँ कभी कभी वो दिन भी देखे थे दीनू काका ने कि सुबह मजदूरी पर निकले, और सांझ ढले लौटे तो सिर्फ खाली हाथ, और आँखों में अगले दिन की मजदूरी की जद्दोजहद लेकर, कई कई रात तो केवल पानी और उबले चने में निकाल दिए...!

 

जब शीला 15 साल की हुई, तो दीनू काका को चिंता सताने लगी कि लड़की सयानी हो गयी, अब तो कैसे ना कैसे शीला के हाथ पीले कर दे, और शायद उस कच्ची उम्र में शीला का ब्याह हो जाता, अगर ये सरकारी नियम न होता तो...!

 

रो धो कर किसी तरह दीनू काका ने लड़की के 18 साल पूरे होने की राह देखी, और जिस दिन शीला 18 साल की हुई उसी दिन से दीनू काका ने शीला के लिए वर ढूंढना शुरू कर दिया....!

 

दिन हफ़्तों में बीते और हफ़्ते महीनों में, पर कोई रिश्ता समझ ना आये, ऐसा नहीं है कि लड़की खराब है या कोई कमी है, पर हैसियत से ज़्यादा दहेज़ एक गरीब जुटाए तो कैसे, क्योंकि दिन भर की मजदूरी के बाद बड़ी मुश्किल से तो 4 रोटी मिलती है परिवार को, अब दहेज़ का इंतज़ाम करे तो कैसे....!

 

कहते है ना कि सब्र का फल मीठा होता है, यूँ ही बातों बातों में दीनू काका को 4 गांव दूर का रिश्ता पता चला, बेचारा मजबूर बाप चल दिया एक और कोशिश में...!

 

लड़का किसी बड़ी फैक्ट्री में मजदूर है, 5000 रुपये मिलते है महीने के, रहने को 2 कमरे का घर, और खाने को 2 वक़्त का खाना और क्या चाहिए...!

 

जैसे तैसे बात हुई, लड़की पसंद आ गयी, और शीला ने भी रिश्ते के लिए हामी भर दी...!

 

लड़के ने भी अपने विचार रखे, कुछ नहीं चाहिए दहेज़ में, ना घोड़ा ना गाड़ी, ना कपड़े न लत्ते, ना बर्तन ना भाड़ा...!

 

आज दीनू काका के माथे पर चिंता की लकीरें मिट गई, ना हल्दी लगी ना फिटकरी और इतना अच्छा रिश्ता मिल गया, दिन वगैरह देख कर शादी कर दी गयी और शादी की रात दीनू काका के दिल को बड़ा सुकून मिला...!

 

शीला भी बहुत खुश थी, पर......

क्रमश:


 

Part - II

 

शीला भी बहुत खुश थी,पर उसे क्या पता था कि चंद पलो में उसकी खुशी एक कड़वे हक़ीक़त में बदलने वाली है, और वो हक़ीक़त उसके हर सपनो को चूर चूर कर देगी...!

 

सुहाग की सेज पर वो बैठी थी, नए नए सपने सज़ा रही थी, और सोच रही थी कि आज वो एक लड़की से औरत बनने वाली है, और अपनी नई ज़िन्दगी की शुरुआत करेगी अपने हमसफ़र के साथ...!

 

धीरे धीरे रात बढ़ने लगी, और देखते ही देखते आधी रात का समय हो गया, और शीला भी उन्नीन्दी सी होने लगी, पर आज उसकी आँखों में नींद भी ना आ रही थी...!

 

यही सोचते सोचते, थकान से चूर होकर वो सुहागरात के बिस्तर पर निढाल हो गयी, और तभी अचानक उसके कमरे में एक आदमी आया, दूल्हे के लिबास में, और शीला भी मद्धम रोशनी में उसे देखने की कोशिश करने लगी...!

 

धीरे धीरे वो आदमी उसके पास आने लगा, और फिर सुहाग के बिस्तर में बैठ गया, और इतने में शीला सहर उठी...!

 

फिर जैसे ही उस आदमी ने शीला को छुआ तो शीला के बदन में सिहरन दौड़ने लगी, और शीला अपने बदन पर उसके ठंडे ठंडे हाथो को महसूस करने लगी...!

 

पर शीला की खुशियों को गम में बदलते देर ना लगी, क्योंकि वो आदमी खुद को भी और शीला को भी बेलिबास करने लगा, पर क्या वो आदमी शीला का पति था, क्यों वो शीला पर अपना हक जता रहा था...!

 

शीला भी आँखें बंद कर उसका साथ निभा रही थी, अब शीला के बदन में सिर्फ पेटीकोट और ब्रा था, और शीला नए नए सपनो से अपने जीवन को सजाने में लगी थी, पर जैसे ही शीला ने अपनी आँखें खोली तो देखा कि वो अर्द्धनग्न थी और कोई अनजान मर्द उसके बदन को छू रहा था, शीला ये देखकर बहुत डर गई और उसने बड़ी तेज़ी से उस मर्द को अपने दूर धकेल दिया और अपने अर्द्धनग्न जिस्म को चादर से छुपा लिया...!

 

और फिर शीला ने उससे पूछा- कौन हो तुम? और यहां क्यों आये हो??

 

उसने जवाब दिया- मैँ तुम्हारे साथ रात बिताने आया हूँ, तुम्हारे पति ने मुझसे सौदा किया है एक रात बिताने का, उसे कीमत दी है मैंने तुम्हारे साथ सुहागरात निभाने की...!

 

शीला- तुम झूठ बोल रहे हो, तुम यहाँ से चले जाओ, और शीला शोर मचाने लगी...!

 

शीला की आवाज़ सुनकर शीला का पति अंदर आता है,

शीला का पति- क्या हुआ क्यों शोर मचा रही हो?

 

शीला (आदमी की तरफ इशारा करके)- ये आदमी कौन है और ये बोल रहा है कि तुमने मेरा सौदा किया है?

 

शीला का पति- हाँ ये सच बोल रहा है, और मेरी जगह तुम्हारे साथ ये सुहागरात मनाएगा....!

 

ये सुनकर शीला अंदर तक हिल गयी और ना चाहते हुए भी उसके आँसू आ गए,

 

शीला (अपने पति से)- क्या सोच कर तुमने मेरा सौदा किया?

 

शीला का पति- देखो शीला, तुम सच सुनकर रह नहीं पाओगी, क्योंकि मैं तुम्हारे साथ सुहागरात नहीं मना सकता और ना ही तुम्हे तन का सुख दे सकता हूँ, इतना सुनकर शीला और ज़्यादा टूट गयी...I

 

ना चाहते हुए भी शीला ने खुद को उस आदमी को सौप दिया, और वो रात भर अपने जिस्म का बलात्कार होते हुए देखती रही, आज वो एक कुँवारी लड़की से औरत तो बन गयी थी, पर अपने जिस्म से आज उसे ना जाने कैसी बदबू सी आ रही थी....!

 

क्रमश:

Part - III

 

सुबह होते है वो मर्द तो चला गया, पर शीला के जेहन में सिर्फ पिछली रात की धुंधली तस्वीरें ही चलती रही, और शीला खुद के उघरे और चोटिल बदन को निहार कर रोती रही,

और खुद से ही सवाल पूछती रही कि क्या एक लड़की होने की सज़ा थी या एक गरीब की बेटी होने का कसूर...?

 

शायद इसी उधेड़ बुन में खोई खोई सी थी कि अचानक ही उसके कानो में उसके पति की आवाज़ पड़ी...

शीला का पति- चलो अब उठ भी जाओ, और नहा कर तैयार हो जाओ, क्योंकि अब हम दोनों ये शहर घूमेंगे...!

 

शीला- अब बचा ही क्या है मुझमे जो तुम इतने हक़ से मुझसे बात कर रहे हो? और कहाँ जाऊँ मैं तुम्हारे साथ? क्या रिश्ता है अब तुम्हारा मुझसे? क्यों मैं निभाऊं ये घुटन भरा रिश्ता? क्या इसीलिए तुमने मेरी मांग भरी थी? क्या सिर्फ किसी और मर्द के लिए मुझसे ब्याह किया था?

 

इन किसी सवालों के जवाब नहीं थे शीला के पति के पास, बस वो सिर झुकाए शीला के सामने खड़ा रहा और बड़ी हिम्मत जुटा कर कहा- देखो शीला मुझे माफ़ कर दो, मैंने जो भी किया वो गलत था पर सच तो ये है कि मैं तुम्हारे कभी तन की प्यास नहीं बुझा सकता, पर कभी तुम्हारे दामन में दाग नहीं लगने दूँगा,

तुम चाहो तो मुझे माफ़ ना करो पर मैं तुमसे कुछ छुपा नहीं सकता...!

 

शीला (आवेश में आकर)- जब तुम नपुंसक थे तो क्यों मुझसे ब्याह किया, क्यों मेरी ज़िंदगी को नरक बना दी? क्या सिर्फ इसीलिए कि हर रात नए नए पति बुला कर मेरे ज़िस्म को बेचकर कमाई कर सको?

 

शीला का पति- नहीं ऐसा नहीं है कि मैं तुम्हारी ज़िन्दगी बर्बाद करना चाहता था, पर सच तो ये है कि तुम्हारे पिता की मज़बूरी के चलते मैंने तुमसे ब्याह किया है....!

 

शीला- अब तुम अपनी गंदगी को मेरे पिता की मज़बूरी का नाम दे रहे हो...!

 

शीला का पति- नहीं शीला ऐसा नहीं है कि मैं इस बात को गलत नहीं कह रहा हूँ, पर सच यह है कि जब तुम्हारे पिता आये थे तुम्हारा रिश्ता लेकर तो मैंने उन्हें अपनी कमजोरी बता दी थी, और सोचा था कि शायद वो इस रिश्ते से मनाही कर दे, पर तुम्हारे पिता ने सोचा कि बिना दान दहेज़ तुम्हारा रिश्ता हो रहा है तो उन्होंने भी हामी भर दी, और तुम भी बहुत खुश थी इस ब्याह के लिए...!

 

शीला- कैसे यकीन करूँ कि तुमने मेरे पिता जी को अपनी नपुंसकता के बारे में बताया था?

 

शीला का पति- क्या तुम सारी हक़ीक़त सुनकर सह पाओगी?

 

शीला- जब खुद के बलात्कार को होते सह लिया तो अब क्या कुछ नहीं सह पाऊंगी?

 

शीला का पति- तो फिर सुनो, "हर रात जो आदमी तुम्हारे साथ सोएगा वो एक कीमत देगा, जिसका आधा हिस्सा मुझे तुम्हारे पिता को देना होगा, और आधा हिस्सा हमारा होगा," यही हम दोनों के बीच तय हुआ है, अगर तुम्हें अभी भी यकीन ना हो तो तुम खुद अपने पिता से पूछ सकती हो...!

 

यकीन तो शीला को अब भी नहीं हुआ कि जो कुछ उसके पति ने कहा उसमे ज़रा भी सच्चाई है, पर शीला की मज़बूरी ऐसी थी कि ना चाहकर भी शीला को यकीन करना हुआ...!

 

शीला अपने ज़िन्दगी की नई शुरुआत का अंत होते देखकर खूब रोई पर वो करे भी तो क्या, जब अपना पति और पिता दोनों ही उसका सौदा कर बैठे हो...!

 

शीला ने इस बात को स्वीकार कर लिया, और खुद को संभाला, दिन भर तो खूब रोई और खुद की बदकिस्मती को कोसा, पर सांझ ढलते ढलते उसने हालातो से और अपनी बर्बादियों से समझौता कर लिया....!

 

और फिर से वो तैयार हो गयी नई नवेली दुल्हन की तरह, एक नए पति के साथ सुहागरात मनाने की खातिर, और जैसे जैसे सांझ ढलने लगी और रात गहराने लगी, शीला खुद को पेश कर दिया एक नए मर्द के हाथों में...!

 

कहते है ना इंसान कीमत देता है तो फायदा भी उठाता है, और हर रात कोई ना कोई मर्द शीला के साथ एक रात की कीमत चुका कर शीला पर अपनी मर्दानगी दिखाता है....!

 

शीला भी खुद को हालातो के आगे बेच चुकी थी, क्या करती वो हर रात एक बन्द कमरे में शीला किसी गैर मर्द के साथ रहती और हर सुबह अपने जिस्म पर बने नाखूनों के निशान तो कहीं दांत से काटे गए निशान को देखकर सुबक उठती, हर रोज़ होने वाले बलात्कार की चश्मदीद और एकलौती गवाह थी वो.....!

क्रमश:

 


Part – IV

 

यूँ तो अब शीला ने हालातो से समझौता कर लिया है, कहने को तो उसकी मांग में किसी के नाम का सिंदूर और गले मे मंगलसूत्र है, पर हर नई शाम को उसके कितने ही पति उसके साथ सुहागरात मनाने को तैयार बैठे रहते है...!

 

और शीला ने भी अपनी आत्मा की पुकार को सुनना भी बन्द कर दिया था, क्योंकि इतना कुछ होने के बाद शीला का ज़िस्म तो ज़िंदा था पर उसके अंदर की औरत मर चुकी थी...!

 

एक दिन शीला के मायके से ख़बर आई कि दीनू काका इस बेदर्द दुनिया को छोड़ कर चले गए, अब इस दुनिया में शीला अकेली थी, हाँ कहने को उसका पति ज़िंदा था, पर आज शीला ने उस मर चुके पति पत्नी के रिश्ते की भी तिलांजलि दे दी थी...!

 

अब शीला की एक पहचान हो गयी थी, पहले तो शीला सिर्फ रात के अंधेरे में अपनी मर्ज़ी के खिलाफ नोची जाती थी, पर जिस दिन दीनू काका का देहांत हुआ उसके बाद से शीला ने एक कोठे का रुख अपना लिया और अपनी खुशी से पहली बार किसी और मर्द के बिस्तर पर थी, आज शीला को अपने ऊपर ना शर्म थी और ना कोई पश्चाताप....!

 

उस कोठे में शीला ने ग्राहकों पर अपने हुस्न का जादू चलाना शुरू कर दिया, अब जिस कमरे में शीला होती थी, उस कमरे को सुहाग की सेज की तरह सजाया जाने लगा और शीला को अब रातभर नहीं, सिर्फ कुछ वक्त की मुँह मांगी कीमत मिलने लगी...!

 

कहते है ना वक़्त रुकता नहीं, चलता रहता है कुछ ऐसा ही हुआ शीला के साथ...!

 

शीला थी तो औरत, औरत की तुलना धरती से की गई है "जिस प्रकार धरती किसी भी बीज को अपनी कोख में पालकर उसका सृजन करती है, उसी तरह शीला ने भी किसी के बीज से गर्भधारण कर लिया" और एक निश्चित समय के बाद उसने एक नन्ही सी जान को जन्म दिया...!

 

दूध सी सफेद वो नन्ही सी गुड़िया किसी खिलौने से कम ना थी, शीला ने उस नन्ही सी जान को नाम दिया "कमल", क्योंकि जिस तरह कमल कीचड़ में खिलता है पर कभी कमल में कीचड़ नहीं लगता उसी तरह शीला ने भी सोचा कि वो अपनी नन्ही सी जान को इस कोठे की दीवारी से बाहर रखेगी...!

 

समय अपनी गति से चलता रहा, जब कमल इतनी समझदार हो गयी कि उसे खुद से दूर करना पड़ जाए तो शीला ने कमल को शहर से दूर एक बोर्डिंग स्कूल में दाखिल करवाया, और उसके आने वाले भविष्य के सपने देखने लगी...!

 

कहते है ना वक़्त को बीतने में वक़्त नहीं लगता, देखते ही देखते 12-13 साल निकल गए और कमल बोर्डिंग स्कूल से निकल कर अब कॉलेज जाने लगी....!

 

क्रमश:

Part - V

 

कहते है ना कि धुँआ तभी उठता है,जब कहीं आग लगी हो, और कभी कभी एक छोटी सी चिंगारी भी विकराल आग को भड़काने के लिए काफी होती है...!

 

कुछ ऐसा ही हुआ शीला और कमल की ज़िन्दगी में...!

 

कमल अब लगभग 21 या 22 साल की हो चुकी थी, और उसे समझ आने लगा था कि तवायफ, कोठा, रात बिताने का क्या मतलब होता है। शीला एक औरत है, एक माँ है, अपनी ज़िन्दगी के इतने साल उसने कमल को खुद से दूर रखा कि कहीं कमल को वो सब ना सहना पड़े जो उसने सहा था..।

 

पर कब तक शीला, कमल को खुद से दूर रखती, इस बार कमल के कॉलेज की छुट्टियाँ पड़ी तो शीला ने कमल को अपने पास बुला लिया...!

 

कमल भी बहुत खुश थी कि इतने सालों के बाद ही सही, शीला ने उसे अपने पास बुलाया, और कमल भी अगली ट्रैन से शीला से पास जाने को निकल गयी...!

 

रात भर का सफर उसने जागते हुए बिताया, और सुबह की पहली किरण के साथ ही ट्रेन कमल के गंतव्य स्टेशन पर आकर खड़ी हो गई...!

 

कहते है ना कि हर एक नई ज़िन्दगी की कभी ना कभी नई शुरुआत होती है, शायद आज कमल की ज़िन्दगी की भी नई शुरुआत होने को इस स्टेशन के इंतज़ार में थी...!

 

कमल स्टेशन से बाहर निकल कर ऑटो स्टैंड के पास पहुँची और उसने एक ऑटो वाले से मोलभाव किया, पर जब कमल ने उस ऑटोवाले को अपने गंतव्य का पता बताया तो ऑटो वाले ने कमल को बेहद ही तिरछी निग़ाहों से देखा और एके हल्की सी मुस्कान दी...!

 

शायद ऑटोवाले ने समझा कि जिस पते पर कमल जाना चाहती है, शायद कमल भी उनमें से एक है जो अपने जिस्म का सौदा करती है, पर उस ऑटोवाले की ये गलतफहमी ही कमल की ज़िन्दगी के एक नए सफर की शुरुआत करने वाली थी...!

 

ऑटोवाले ने ऑटो स्टार्ट कर कमल को बैठा लिया और अपना ऑटो चला दिया, और ऑटो वाला साइड मिरर से बार बार कमल को देख रहा था, और शायद अब ऑटो वाले के कुछ बेगैरत से अरमान हिलोरें मारने लगे थे, अचानक से ऑटोवाले ने सड़क के किनारे ऑटो को रोक दिया, और कमल से कहा कि ऑटो में कुछ दिक्कत आ गयी है...!

 

कमल ने भी उस ऑटो वाले की बातों में विश्वास कर लिया, और बेफ़िक्र होकर ऑटो में बैठी रही, कहते है ना कभी कभी इंसान को कुछ पूर्वाभास होते है...!

 

कमल को भी लगने लगा कि ज़रूर दाल में कुछ काला है क्योंकि ऑटो को रुके हुए 40 मिनिट से ज़्यादा हो गए थे, अचानक से कमल को ऐसा लगा कि किसी ने उसके हाथ को पकड़कर ऑटो से बाहर खींचने लगा...!

 

कमल अपने बचाव में उसका विरोध कर रही थी, तभी उसने देखा कि सड़क पर एक नौजवान लड़का मॉर्निंग वॉक करते हुए उनकी तरफ आ रहा है तो उसने पूरी ताकत से आवाज़ लगाई "बचाओ, बचाओ"...!

 

कमल की आवाज़ सुनकर उस नौजवान ने पूरी ताकत लगाकर कमल को बचाया, और उस ऑटोवाले को अच्छा सबक सिखाया...!

 

फ़िर उस लड़के ने कमल से पूछा कि आपको कहाँ जाना है,

कमल ने उसे अपना पता बताया और उसके बाहों में खुद को सिमटा कर रोने लगी...!

 

उस लड़के ने कमल को सहारा दिया, और कमल को उसके बताये गए पते पर सुरक्षित छोड़ कर आया...!

 

कमल ने उस लड़के को अंदर आने को कहा, पर उस लड़के ने हिचकते हुए वहां से रवानगी ले ली, पर कमल से वादा किया कि एक ना एक दिन वो कमल से ज़रूर मिलने आएगा...

 

क्रमश:

 

Part - VI

 

प्रतीक (वही लड़का जिसने कमल को सुरक्षित उस बदनाम गली तक छोड़ा था) की आँखों मे आज रात नींद नहीं थी, हाँ पर हर 1 मिनिट में उसकी आँखें बंद होती थी क्योंकि आँखें बंद होते ही, कमल उसकी यादों में आती थी...!

 

और यहाँ कमल भी कुछ बैचैन सी थी, शायद बहुत दिनों के बाद हॉस्टल छोड़ने की बेचैनी या इस उम्र में प्रतीक का मिलना, पर कमल का दिल ये मानने को तैयार ना था कि कमल को उस अनजान लड़के की तरफ आकर्षण हो रहा है...!

 

इंतज़ार की ये रात कमल और प्रतीक को बहुत लंबी लग रही थी, ना जाने क्यों पर शायद प्रतीक और कमल एक दूसरे से इश्क़ कर चुके थे, लेकिन इस बात से दोनों अनजान भी थे...!

 

किसी तरह वो रात तो कट गई, और सुबह करीब 6 बजे प्रतीक मॉर्निंग वॉक के निकला, पर आज वो उस highway तरफ ना जाकर, ना जाने क्यों शहर की बदनाम गलियों तरफ चल दिया...!

 

कहते है ना दिल के तार जुड़े है तो धड़कने भी जुड़ेगी, कुछ ऐसा ही हुआ कमल और प्रतीक के साथ, प्रतीक ना चाहते हुए भी, ना जाने क्यों आज उस कोठे के सामने ठहर सा गया था, जहाँ उसने पिछले दिन कमल को छोड़ा था, और कमल भी ना जाने क्या सोचती हुई अपने कमरे की खिड़की में आ गयी, और अपने कोठे के आसपास के नज़ारो को देखने लगी, और उसकी नज़र प्रतीक पर पड़ी....!

 

प्रतीक को देखकर पहले तो कमल शरमा गयी, पर फिर उसने प्रतीक को देखकर अपना हाथ हिलाया जैसे वो प्रतीक का ही इंतज़ार कर रही थी, और प्रतीक ने भी जवाब में हाथ हिलाया...!

 

प्रतीक कमल को देखकर मुस्कुरा उठा और फिर वो अपनी वॉक के लिए चला गया, पर उसकी गर्दन बार बार कमल के घर की तरफ जा उठती थी...!

 

शायद मोहब्बत का बीज दोनों के दिल की ज़मीन में जुत गया था, और अब सिर्फ कुछ दिन में ही उस बीज ने दिल मे पनपना शुरू कर दिया था...!

 

कमल अभी तक शीला के इतिहास से अनजान थी, पर उसे पता था कि कोठा क्या होता है...?

 

शीला भी अभी कुछ ज़्यादा उम्र की नहीं हुई थी, वो अभी कुछ 40-42 साल की स्त्री बन जिए थी, पर उसके डिलडॉल आज भी इतने मदमस्त थे कि किसी नययुवा से लेकर एक 65 साल के वृद्ध के ज़िस्म में करंट दौड़ा दे....!

 

शीला आज भी अपने ज़िस्म को बेचती थी, पर कमल के आ जाने के बाद उसने अपने ग्राहकों की संख्या बहुत कम कर दी थी, क्योंकि शीला चाहती थी कि कमल इस गंदे दलदल में ना जाये, क्योंकि शीला की नज़रो में कमल आज भी बच्ची ही थी

और कमल भी इस बात से अनजान थी कि उसकी माँ को पेट पालने के लिए अपने ज़िस्म की नुमाइश करनी पड़ती है,

पर जंगल की आग और बदनाम गलियो के चर्चे उड़ते उड़ते कमल के कानों पर भी पड़े, पर कमल ने इस ओर ध्यान नहीं दिया, पर जब उसने सुना कि इन बदनाम गलियो में लोग सिर्फ उसकी माँ के लिए आते है तो उसे इस बात का यकीन ना हुआ...!

 

प्रतीक भी आजकल अपना रास्ता बदल बदल कर, किसी ना किसी बहाने से कमल को देखने उन बदनाम मोहल्ले के चक्कर लगा लेता था, पर कई बार प्रतीक को कमल नहीं दिखती थी...!

 

प्रतीक और कमल जब एक दूसरे को देखते थे तो दोनों एक दूजे की निगाहों में गुम हो जाते थे, कहते है ना इश्क़ का मर्ज़ हुआ तो ज़माने को खबर पहले होती है...!

 

प्रतीक और कमल की मोहब्बत के चर्चे भी शहर भर में आम हो रहे थे, पर लोगो के ज़ुबाँ पर एक बात हमेशा रही कि कमल भी उस बदनाम गली की एक तवायफ है...!

 

कमल जो इन बातों से अनजान थी, एक बार उसने देखा कि एक आदमी जो लगभग उसकी मां की उम्र का था, उसने शीला से गुपचुप कुछ बातें की और इशारे ही इशारे में इनकी बातें खत्म हो गई, पर कमल उनकी बातें समझ ना पाई...!

 

उसी शाम को जब अंधेरा बाधा तो कमल ने देखा कि चोरी छुपे वही आदमी शीला के साथ शीला के कमरे में जा रहा है,

और कमरे का दरवाजा शीला ने बन्द कर दिया...!

 

कुछ देर कमल वही खड़ी थी और मन ही मन बहुत कुछ सोच रही थी, कि शीला की मदमस्त सिसकियाँ कमल के कानों में पड़ी, तो कमल को समझते देर ना लगी कि अंदर के कमरे में क्या हो रहा है...!

 

और कमल अपने कमरे में आकर फूट फूट कर रोई, क्योंकि उसकी माँ को पेट की खातिर खुद को बेचना पड़ता है...!

 

क्रमश:


Part - VII

 

कमल को आज इतना दुख हुआ कि कमल के पालन पोषण के लिए शीला को अपनी इज़्ज़त ना जाने किन किन लोगों के सामने उतारनी पड़ी, और ना जाने कितनी रातों को शीला किसी और के बिस्तर की रंगीनियत बनी...!

 

पर कहते है ना कि इंसान की मौत झूठ से नही, आधे सच के ज़हर कारण होती है, और शीला के तवायफ़ बन जाने की हक़ीक़त कमल को नहीं पता थी, इसीलिए आज उसे अपनी माँ शीला से घिन्न आने लगी थी...!

 

कमल की आँखों मे आँसूओ का सैलाब था, तो दिल में सवालों का तूफान, पर कमल ने कुछ देर बाद अपनी आँखों से आसूँ पोंछ लिए और दिल जे सवालों को दिल में ही दफ़न कर दिया...!

 

अगली ही सुबह बिना किसी को बताए कमल अपना सारा सामान लेकर उस बदनाम गली से निकल गयी, ना उसे पता था कि कहाँ जाना है, और ना उसने कुछ सोचा था, उसे तो बस अपनी माँ से, इस बदनाम गली से,और इस शहर से बहुत दूर चले जाना था...!

 

पर कोई था जिसने कमल को जाते हुए देख लिया था, वो उसे रोकना चाहता था, पर कमल को रोकने का कोई बहाना भी नहीं मिल रहा था और कमल को जाते हुए सिर्फ़ देखता ही रहा, वो और कोई नहीं प्रतीक था, जो कमल से मोहब्बत करता है...!

 

कमल को जाते हुए देखता रहा जब तक कमल उस बदनाम गली से बहुत दूर नहीं चली गयी, अब प्रतीक की आँखों के सामने सिर्फ क्षितिज था, जहां आसमाँ और धरती एक दूसरे से मिलते है...!

 

प्रतीक एक पल को तो भावशून्यता के गर्त में चला गया, पर अगले ही पल प्रतीक इस हक़ीक़त की दुनिया मे लौट आया था, और प्रतीक की आँखों में कुछ बिखरे से सपने और आँसू ही रह गए थे...!

 

कमल भी ना जाने किस राह चल पड़ी थी, शायद शून्य की तलाश में वो खुद शून्य हो चली थी, रोते हुए और पैदल चलते हुए वो स्टेशन आ गयी थी, और बिना टिकट के ही पहली ट्रेन में बैठ गयी थी, पर शायद किस्मत उसे उसकी ज़िन्दगी के उन अनजान हक़ीक़त से रूबरू करना चाहती थी, जो आज तक कमल के लिए अनजान थे...!

 

ट्रेन में बैठे बैठे बहुत देर हो गयी थी, पर ट्रेन चलने का नाम नहीं ले रही थी, कमल उस ट्रेन में बैठे बैठे रोती रही और पिछली रात की हक़ीक़त को याद करती रही...!

 

तभी कमल ने देखा कि प्रतीक उसे ढूंढते हुए स्टेशन पर आ गया था, शायद कमल को यकीन था कि उसकी मोहब्बत यूँ ही बेकार नहीं होगी, और हुआ भी यही, प्रतीक कमल को लेने आया था...!

 

कमल ट्रेन से उतर आई और प्रतीक के गले लग गयी, वो प्रतीक से लिपट कर रोती रही और अपने दर्द को हल्का करती रही, प्रतीक भी उसे सहारा दे रहा था, क्योंकि प्रतीक को भी जीने की एक वजह मिल गयी थी जो शायद कमल की वजह से थी...!

 

प्रतीक कमल को समझा बुझा कर अपने साथ ले आया, पर कमल का मन नहीं था कि वो वापस कोठे में जाए, इसीलिए वो प्रतीक के घर मे पेइंग गेस्ट की तरह रहने लगी...!

 

पर कहते है ना कि वक़्त ही मरहम होता है,और वक़्त ही खंजर भी होता है...!

 

प्रतीक के यहां रहते हुए कमल को लगभग 3 महीने हो गए थे, इस दौरान कमल ने एक नौकरी ढूंढ ली थी, और अपनी ज़िन्दगी का एक मकसद ढूंढ लिया था..!

 

"ज़हर दे देता वक़्त मुझे, काश हक़ीक़त ना बताता"

 

क्रमशः

 


Part - VIII

 

कमल ने 3 महीनों में प्रतीक को अच्छी तरह से समझ लिया था, कमल और प्रतीक दोनों एक दूसरे से प्यार करते थे, तो जल्द से जल्द उन दोनों ने शादी के बंधन में बंधने का निर्णय ले लिया...!


शादी के लिए प्रतीक ने मंदिर में सारी व्यवस्था कर ली थी, और दुल्हन के लिबास में कमल भी पूनम के चाँद की तरह लग रही थी, और प्रतीक भी दूल्हे की शेरवानी में बहुत अच्छा लग रहा था...!


कमल और प्रतीक ने सात फेरे लेकर, एक दूसरे को अपना जीवन साथी बना लिया, और प्रतीक ने कमल के गले में मंगलसूत्र पहना कर कमल को अपना नाम दे दिया, और कमल ने भी जीवन भर प्रतीक का साथ निभाने की कसम खाई...!


प्रतीक और कमल जब शादी करके घर पहुँचे तो घर को प्रतीक ने बहुत खूबसूरती से सजाया था, अब प्रतीक और कमल ने अपनी पहली रात सुहागरात की तैयारी शुरू कर दी...!

धीरे धीरे वक़्त गुजरने लगा और शाम ढ़ल कर रात में बदल गई, रात भी धीरे धीरे अपनी काली जवानी के उफान पर आने लगी थी, कमल सुहाग के सेज पर प्रतीक का इंतज़ार करने लगी और थोड़ी देर बाद प्रतीक कमरे में आया तो कमल की बेताबी बढ़ने लगी, और कमल की धड़कन बढ़ गयी...!


रात गहराने लगी थी, प्रतीक और कमल भी अपनी ज़िंदगी की पहली रात में ऐसे डूब गए जैसे बरसो के प्यासे दो जिस्मो को इश्क़ का समुंदर मिल गया हो, और धीरे धीरे कमरे में केवल कमल की सिसकियाँ और प्रतीक की प्यार भरी बातें ही सुनाई दे रही थी...!

सुहागरात के बाद अगली सुबह,

कमल ने प्रतीक के पैर छुए और बड़े प्यार से कहा - जनाब उठ भी जाइये, या रात अभी और बाकी है...!

प्रतीक ने भी प्यार से जवाब दिया - जी मैडम रात तो अभी बहुत बाकी है, पर ये कमबख़्त सुबह बड़ी जल्दी हो गयी...!

कमल ने प्रतीक की बातों का मतलब समझ लिया, पर वो नासमझ होकर बोली- अरे जनाब उठ जाइये और फिर कहीं चलते है घूमने क्योंकि रात में फिर थककर सोना भी है, कल तो रात भर आपने सोने ही नहीं दिया...!


प्रतीक भी उठकर बाथरूम में चला गया, और नहाने के बाद आवाज़ लगाई - कमल मैं TOWEL लेना भूल गया, प्लीज मुझे TOWEL दे दो...!


कमल ने प्रतीक को towel दिया और जब लौटने लगी तो प्रतीक ने कमल का हाथ पकड़ कर बाथरूम के अंदर खींच लिया...!

फिर प्रतीक और कमल का romance करीब 1 घण्टे तक चलता रहा और फिर दोनों नहाकर बाथरूम से बाहर निकले...!


दिनभर दोनों ने साथ मे समय बिताया और शॉपिंग किया, और बाहर ही lunch करके दोनों देर शाम को घर लौटे, घर आकर कमल ने प्रतीक से बड़े प्यार से पूछा - सुनो ना एक बात पूछनी थी...?

प्रतीक - हाँ पूछो ना...!


कमल - तुम जानते हो ना कि उन बदनाम गली में मेरी माँ की पूरी ज़िंदगी गुज़र गयी और उन्होंने मेरे परवरिश के लिए कितना कुछ किया है, क्या हम भी उन बदनाम गलियों की औरतों की भलाई के लिए कुछ कर सकते है....?


ये सुनकर प्रतीक ने कहा - कमल जानता हूँ कि तुम्हारी माँ जे कितना कुछ सहा है और कितना दर्द मिला है उनको ज़िन्दगी से, और हम दोनों भी अब उन औरतों के अच्छे जीवन यापन के लिए कुछ न कुछ ज़रूर करेंगे...!


ये सुनकर कमल बहुत खुश हुई और प्रतीक को गले लगा लिया, और प्रतीक ने भी कमल के माथे पर प्यार से किस किया, और अपनी स्वीकृति दे दी...!


क्रमशः

 

Part – IX

 

प्रतीक के इस प्यार को देख कर कमल बहुत खुश हुई और अपनी किस्मत पर सराहने लगी, कहते है न कि तकदीर के बंद पिटारे में किसे क्या मिल जाए, कुछ कहा भी नहीं जा सकता है I


कुछ ऐसा ही हुआ कमल के साथ, जब उसने पहली बार उस इंसानको देखा जिसने शीला को अपनी दुल्हन बनाया था, या यूँ कहे कि कमल ने पहली बार अपने पिता को देखा, पर कमल इस हकीकत से अनजान थी कि जिस इन्सान से वो मिलने जा रही है वो कहने को तो उसका पिता है, पर उस इंसान से कमल का कोई भी रिश्ता नहीं था...I


कमल अपने पति प्रतीक के साथ एक रोज़ उसी बदनाम गली में गयी जहां पर अपना जिस्म बेच बेच कर शीला ने कमल को इस काबिल बनाया कि कमल अब अपने पैरो में खड़ी होकर अपनी जिंदगी को आत्मसम्मान से जी सके...I


शीला ने कमल को इस बार एक नये रूप में देखा, मांग में सिन्दूर, गले में मंगलसूत्र और कमल के हाथो में प्रतीक का हाथ, ज जिसे देख कर शीला बहुत खुश हुई और दिल से प्रतीक और कमल को आशीर्वाद दिया...I


प्रतीक ने भी बड़े प्यार से शीला से बात की और कमल ने अपने फैसले के बारे में शीला को बताया कि, कैसे वो इस बदनाम गली की औरतों को उनका आत्मसम्मान वापस दिलवाएगी और उनके पुनरुत्थान के लिए लड़ रही है क्यूंकि चाहे वो बदनाम गली की तवायफ़ हो पर है तो वो भी औरते, जो अपने जिस्म पर न जाने कितने घाव सहकर उन मासूम बच्चियो की जिंदगी इंसान के रूप में छिपे शैतानो से बचाती है, पर समाज उन्हें तवायफ़, गन्दी, वेश्या और न जाने क्या क्या बोलकर उनका उपहास करते है, और वो ही शरीफ लोग रात के अँधेरे में छुप छुप कर उन औरतो के जिस्म को नोचकर अपनी हैवानियत मिटाते है, जिसके बदले में उन औरतो को मिलते है सिर्फ कुछ हरे कागज़ के टुकड़े जिसे लोग पैसे कहते है.....I


ये सुनकर शीला के आँखों में आंसू आगये कि आज उनकी बेटी कमल कितनी बड़ी हो गयी और कितनी समझदार हो गयी, चाहती तो कमल भी इस दलदल में उतर कर ज़माने की गंदगी में दब जाती पर, कमल ने उन लोगो की फ़िक्र की, जिनका शायद सबकुछ होकर भी कुछ नहीं होता...I


इतना सुनकर शीला ने सिर्फ इतना ही कहा- जा बेटी तुझे भगवान हर ख़ुशी दे और तेरा सुहाग सदा सलामत रहे, हम लोग तो बिना पति के ही हर रात सुहागन होते है पर तू अपने सुहाग को अपना प्यार दे...I


ये आशीर्वाद लेकर कमल और प्रतीक उस गली से निकल आये और जैसे ही मेन रोड में आये तो अचानक से ही उनकी कार के सामने एक फटेहाल भिखारी आ गया, जिसे प्रतीक ने बचा तो लिया पर हल्की सी टक्कर लगने के कारण वो भिखारी बेहोश हो गया, जिसे लेकर कमल और प्रतीक जल्द से जल्द हॉस्पिटल चले गये....I


(अब कमल की जिंदगी का वो अध्याय फिर से शुरू होने वाला है जिससे कमल आज तक अनजान थी )

क्रमश:


Part – X

 

प्रतीक और कमल उस भिखारी को हॉस्पिटल लेकर गये, जहाँ पर डॉक्टर्स ने उस भिखारी का प्राथमिक उपचार किया और फिर प्रतीक को बताया कि उस भिखारी की हालत सही है, पर कुछ भी न खाने के कारण बहुत ज्यादा कमजोरी आगयी हैं और अभी बेहोशी होने के कारण कम से कम आज रत भर इन्हें ऑब्जरवेशन के लिए हॉस्पिटल में ही रहना होगा, जिस पर कमल और प्रतीक दोनों तयार हो गये...I


प्रतीक को इस बात की ख़ुशी थी कि उन लोगो ने उस भिखारी को हॉस्पिटल पहुँचा कर उसका इलाज करवाया और कम से कम अपने इस अपराध का पश्चाताप किया, और फिर कमल वही हॉस्पिटल में थी जब तक प्रतीक डॉक्टर से दवा लिखवाकर मार्किट से दवा और कुछ खाने के लिए ले आया, यहाँ कमल के मन में एक सवाल जरुर उठा जो शायद कमल की जिंदगी का बहुत ही अनसुलझा सवाल बनने वाला था....I


कमल अपने इसी सवाल में खोई हुई थी, और शायद अपने सवाल के जवाब के इंतज़ार में थी, कि तभी कमल के कानो में प्रतीक की आवाज़ पड़ी हेलो मिसेस कमल प्रतीक, कहाँ गुम है आप...?

कमल ने जवाब दिया कहीं नहीं बस कुछ सोच रही थी...I

प्रतीक क्या सोच रही थी मैडम..?

कमल कुछ नहीं बस कुछ ख्याली पुलाव..I


(इतना कह कर कमल धीरे से मुस्कुरा दी, और कमल को मुस्कुराता देख कर प्रतीक भी मुस्कुरा दिया, और फिर दोनों हॉस्पिटल से निकल कर अपने घर की तरफ चल दिए...I )


थोड़ी देर बाद कमल और प्रतीक अपने घर के सामने थे, और फिर प्रतीक घर के अन्दर चला गया और कमल वही घर के सामने गार्डन में बैठकर उसी भिखारी के बारे में सोचने लगी, न जाने क्यों कमल न चाहते हुए भी बार बार सिर्फ उस भिखारी के बारे में सोच रही थी, और ये परेशानी अब कमल के चेहरे पर साफ़ दिखने लगी थी, जिसे अब प्रतीक ने पढ़ लिया था...


रात में प्रतीक और कमल ने बाहर होटल में डिनर किया और फिर कमल के कहने पर दोनों हॉस्पिटल गये और उस भिखारी का हालचाल लिया, डॉक्टर ने बताया कि उसको होश तो आया है पर वो अभी सो रहा है, जिस कारण से आप उससे सुबह मिल लेना, इतना सुनकर कमल ने राहत की साँस ली और दोनों घर आ गये....I


घर पहुँचकर प्रतीक म=ने कमल से पूछा तुम्हारी तबियत तो ठीक है न...?


कमल हाँ तबियत तो ठीक है, पर न जाने क्यों बार बार मेरे दिल और दिमाग में सिर्फ एक ही बात अ रही है कि उस भिखारी के घरवाले उसकी कोई खोज खबर ले रहे है या नहीं...? क्या उसके घर में कोई उसका साथ देने वाला है या नहीं...?


प्रतीक तुम भी इतनी सी बात की सुबह से टेंशन ले रही हो, अरे उसके घरवाले उसको ढूंढ रहे होंगे, या हो सकता हो कि उसका कोई भी न हो इस दुनिया में...I


प्रतीक की इस बात को सुनकर कमल को थोडा सुकून मिला, कि शायद उसके घरवाले उसे ढूंढ ले या हो सकता है कि अकेला ही हो इस दुनिया में...I


अब रात भी गहराने लगी थी तो प्रतीक और कमल थोडा रोमांटिक टाइम साथ में बिता कर सो गये और अगली सुबह प्रतीक और कमल फिर से उसी बदनाम गली गये, और आज कमल अपनी माँ को लेकर उस 6x8 के बंद कमरे से निकालकर अपने साथ घुमाने ले गयी और फिर उन तीनो ने साथ में अच्छा समय बिताया...I


या यूँ कहे कि आज पहली बार शीला ने इतनी हसीं दुनिया को अपनी आँखों से देखा था जहाँ हरे भरे पेड़-पौधे, समतल मैदानी क्षेत्र, कुछ नई नई सी दुनिया देखी...I

क्रमश:

 

Part - XI


प्रतीक और कमल के साथ आज पहली बार शीला ने अपनी जिंदगी को खुल कर जिया है, नहींतो आज तक वो केवल रौंदी गयी थी, मसली गयी थी और लूटी गयी थी...I आज पहली बार शीला की आँखों ने खुद को वो नज़ारे दिखाए थे जो कभी भी उन बंद कमरों में नहीं देख सकी थी....I


शाम को लौटते वक़्त तीनो ने बाहर ही खाना खाया और थोडा खाना प्रतीक ने पार्सल करवा लिया, फिर थोड़ी देर बाद वो तीनो उसी हॉस्पिटल पहुँचे, जहाँ पर पिछले दिन उस भिखारी को एडमिट किया था, लेकिन रात होने के कारण केवल 1 ही व्यक्ति को एक बार में मिलने की इजाजत थी, इसीलिए कमल उस पार्सल खाने को लेकर अंदर गयी, कमल को देखकर उस भिखारी के आँखों में आँसू आ गये, और उसने बड़े प्यार से कमल के सर पर हाथ फेरकर दुआएं दी, और उसके बाद कमल वार्ड से बाहर आ गयी, अब प्रतीक वार्ड में गया उस भिखारी ने प्रतीक को भी आशीर्वाद दिया और धन्यवाद किया क्योंकि प्रतीक और कमल ने उसे बचाया था...I


प्रतीक ने वार्ड से निकलते वक़्त उस भिखारी से कहा बाबा आप मेरी माँ को भी आशीर्वाद दे दो, और फिर प्रतीक भी बाहर आ गया, फिर कमल शीला को लेकर वार्ड में गयी क्यूंकि शीला नहीं जानती थी कि उस वार्ड में भर्ती वो भिखारी ही उसका पति हैं...I


जब शीला ने अपने पति को और उसके पति ने शीला को देखा तो दोनों एक दूसरे को देखकर हैरान रह गये, कि जिंदगी के ढलते हुए मोड़ पर मिले तो भी इस जगह और इस हाल में कि ना तो एक दूसरे से कुछ पूछ सकते थे और न ही एक दूसरे को कुछ बता सकते थे, पर हाँ दोनों की आँखों से बहते हुए आंसूओ ने शायद बिना कुछ कहे ही सब कुछ कह दिया हो और दोनों सिर्फ एक दूसरे को देखते ही रह गये...I

तभी वहां ऑनड्यूटी स्टाफ नर्स ने आदेश दिया कि मरीज़ से मिलने का वक्त ख़त्म हो गया है, पर शायद शीला के लिए उस एक मुलाकात ने उन पुराने ज़ख्मो को हरा कर दिया और फिर भी शीला ने अपने दिल के ज़ख्मो को छुपाना ही बेहतर समझा और अपने दिल ही दिल में सुबकती सी वो कार में आकर बैठ गई, और फिर प्रतीक ने शीला को उसी बदनाम गली के उस कोठे में छोड़ दिया जो अब शीला का घर कहलाता था, और फिर प्रतीक और कमल अपने घर को लौट आये, पर कमल के मन में अब नये सवालों ने जन्म ले लिया था कि आखिर उस भिखारी और उसकी माँ का क्या रिश्ता था जो दोनों की आँखों में आँसू थे, और दोनों एक दूसरे को पहले से जानते हो....?


इधर शीला उस रात फूट फूट कर रोई क्यूंकि आज वो फिर से उसी मोड़ पर कड़ी थी, जहाँ पहली बार उस इंसान की दुल्हन बनी थी और अपनी जिंदगी की शुरुआत की थी...I

अगली सुबह कमल शीला के पास आई और शीला को रोता हुआ देखकर पूछी- माँ क्या बात है, कल रात से तुम बेचैन हो, क्या तुम उस भिखारी को जानती हो, क्या तुमसे उसका कोई रिश्ता हैं...?


शीला को आज पहली बार किसी के कंधे का सहारा मिला था, और उसने कमल के कंधे पर अपना सर रखकर अपना सारा दुःख-दर्द और अपनी जिंदगी की हकीकत कमल के सामने खोल दी और पूरी कहानी बता क्र उसने ये भी बताया कि उस आदमी से शीला का क्या रिश्ता है और वो क्यों किसी की पत्नी होकर भी इस कोठे तक पहुंची और क्यों आज उस बदनाम गली में शीला के नाम के चर्चे मशहूर थे और अपनी पूरी जिंदगी कमल के सामने पन्ने दर पन्ने जो लिखा था वो सब बता दिया...I


इतना सुनकर कमल भी रोई कि कैसे उस आदमी की वजह से शीला को हर रात बिकना पड़ता था, और क्यों वो आज भी उस आदमी को इतना समझ रही है....I


इतनी हकीक़त सुनकर कमल उस बदनाम गली से निकलकर सीधे हॉस्पिटल पहुंची और फिर उस भिखारी से मिलकर उसने अपनी माँ के साथ किये गये अत्याचारों के जवाब मांगे, इस तरह कमल के इतने सारे सवालो के जवाब में उस भिखारी ने बताया कि कैसे शीला के पिता ने शीला का सौदा किया था और ये जानकर भी मैं नामर्द हूँ फिर भी उसकी शादी मुझस करवा दी, क्यूंकि इसके बदले में शीला के बाप को हर रोज़ एक मोटी रकम मिलती थी जिससे वो अपने जीवन यापन और शौक पूरे करता था, उस भिखारी ने ये भी बताया कि कैसे शीला के जाने के बाद उसकी जिंदगी नरक बन गयी और वो इस हाल में दर-दर की ठोकरे खा कर ज़िंदा है, शायद इसीलिए कि वो एक बार शीला से माफ़ी मांग सके और शीला उसे माफ़ कर दे...I


इतना सुनकर कमल ने प्रतीक को फ़ोन किया और बताया कि तुम माँ को लेकर मंदिर आओ, और फिर कमल ने उस भिखारी को हॉस्पिटल से डिस्चार्ज करवा कर मार्किट से नये कपडे दिलवाए और उसे अपने घर ला कर नहलवा कर तैयार किया और फिर दोनों कार में बैठ कर मंदिर के लिए निकल गये और थोड़ी ही देर में दोनों मंदिर पहुँच गये, जहाँ प्रतीक शीला के साथ मंदिर में था...I


मंदिर में कमल ने शीला और उस भिखारी को मिलवाया और दोनों के आपसे गिले शिकवे दूर करवा कर, फिर से दोनों को एक दूसरे का हमसफ़र बनाया जिसकी गवाह वो खुद, और उसका पति दोनों थे और फिर उन दोनों ने सात फेरे लेकर साथ जीने मरने की कसमे खाई और इस बार वो चारो अपने घर की और चल पड़े, जहाँ चारो हंसी ख़ुशी रहने के सपने सजाने लगे...I


(इस बात को कई साल बीत गये और फिर कमल एक NGO से जुड़ गयी जो उन बदनाम गली की औरतो की भलाई के लिए काम करती है और कमल ने उस NGO को काफी ऊंचाई तक पहुँचाया )


समाप्त


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