Anima Das

Drama

2.1  

Anima Das

Drama

उस रात के बाद ..

उस रात के बाद ..

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आज तूफां थम नहीं रहा । अंधेरे मेंं जैसे परछाई भी खामोश सो रही है । तेज हवा की बौछार के साथ खिड़की के पर्दे भीग चुके हैं ।

हवा की उन्मत्त सरगम और बिजली की चमक मेंं पेड़ों की थिरकन को देखकर ऐसा लगता है जैसे सारी उन्मुक्त कल्पनाएं निकल कर उस दीवानी बरसाती रात के साथ नाच रहीं हों । रह रह कर गरज पड़ता है बादल तो लगता है काश सुमित होते, उनके सीने मेंं छुप जाती ...पर सुमित ....

रोज़ की तरह उस दिन भी सुमित ने घर आने मेंं देर कर दी । दरवाजे पर लगी विंडचार्म की आवाज़ से ऐसा लगा जैसे शायद वो आ कर दरवाजे पर खड़े हों पर नहीं ......रास्ता सुनसान था .. मन दुर्बल भावनाओं से भरा जा रहा था । जब भी सुमित से कहती थी कि मुझे डर लगता है अकेले मेंं तो कहते थे कि मुझे भीड़ से नफ़रत है ।

शादी को दो साल हो चुके थे पर वो बच्चा होना तो दूर, बच्चे का नाम तक नहीं लेते थे ..कहते थे मुझे कुछ दिन बस तुम्हारे साथ यूँही खुल कर जीने दो ...इस जिंदगी को तुम्हारी साँसों मेंं महसूस करने दो .. ये वक्त फ़िर कहाँ मिलेगा बच्चा होने के बाद ? और मैं ख़ामोश हो जाती थी ..डूब जाती थी उन प्यार के अंतरंग पलों की गहराइयों मेंं । ढूंढ़ने लग जाती थी खुद को उनकी भारी पलकों मेंं । मेरे माथे का सिंदूर दमकने लगता था जब वो होंठों से चूम लेते थे माथे पर । दिल की धड़कन बढ़ जाती थी जब वो सुबह ऑफिस के लिये निकलते थे क्यों कि वह जाते तो समय पर थे पर आने का समय तय नहीं था । बारिश और हवा तेज होने की कारण बिजली भी चली गई थी ..लेंड लाईन फ़ोन भी बंद हो गया था । मोमबती जला कर खिड़की के पास बैठी बैठी मैं घबरा रही थी कि सुमित ठीक होंगे कि नहीं । मूसलाधार बारिश में कुछ दिखाई नहीं पड़ रहा था । मोमबती की रौशनी मेंं मैं अपनी शादी का अलबम देखने लगी । अचानक एक तस्वीर पर मेरी नजर ठहर गई जहां सुमित, मैं और उनके कॉलेज की एक दोस्त रेवा थी ....बहुत ही ख़ूबसूरत और एक पीली पतली सी साड़ी मेंं । बहुत ही आकर्षक लग रही थी । मैंने इन दो सालों मेंं कभी इस तस्वीर को गौर से नहीं देखा था ..। उस दिन न जाने क्यूँ इस तस्वीर से नज़र नहीं हट रही थी जब कि रेवा का जिक्र कभी नहीं हुआ था । शायद मेरा दुर्बल मनोभाव है यह सोच कर अलबम बंद कर दिया । सुमित के प्यार पर और उनकी हर बात पर मुझे भरोसा था ..ऑफिस से लौटते वक्त वो मेरी लिये रोज़ एक गुलाब लाते थे और बड़े प्यार से बालों मेंं लगा देते थे ...कहते थे तुम्हारी ख़ूबसूरती पर सिर्फ़ और सिर्फ़ मेरा हक है और मैं शरमाते हुए उनके सीने से लिपट जाती थी । कुछ नया डिश जरुर बनाकर अपने हाथों से खिलाते थे । कैसे उन पर भरोसा न करूँ ? कोई कमी नहीं थी मेरी जरूरतों की और मैं बस उनका इंतजार करती थी देर रात तक.....और उस रात भी ......

यूँ सोचते सोचते कब मोमबती सा मैं भी पिघलती जा रही थी पता न चला ...घड़ी देखी तो रात के ढाई बज चुके थे ....मोम पिघल कर जम गया था कांच पर, जैसे मेरा डर और घबराहट आँखों से बह कर गालों पर और गर्दन के निचले भाग पर जम गये थे । बारिश बंद होने के वावजूद बिजली नहीं आई थी ..ऐसा ही होता है पहाड़ी इलाकों मेंं । कब बैठे बैठे आँख लग गई थी ..पता न चला । अचानक ऐसा लगा मेरे माथे पर किसीने हाथ रखा ..और धीरे से आवाज़ दी और मैं चौंक कर उठ गई थी सामने सुमित थे । मैं जोर से रोते हुए उनके सीने पर गिर पड़ी । भोर हो चुकी थी ...हल्की सी रोशनी मेंं किसी का साया नज़र आया मुझे ..। आँख मलते हुए जो देखा खुद पर विश्वास नहीं हुआ था ...इस कमरे से उस कमरे को भाग रही थी मैं सुमित के पीछे पीछे रोते बिलखते हुए ....और वो बड़े तथाकथित शांत स्वभाव से अपनी सारी चीज़ें समेट रहें थे एक बड़े सूटकेस मेंं ......खामोशियाँ उनकी चिल्ला चिल्ला कर मुझे धकेल रही थी दूर बहुत दूर ....बस इतना कहा था उन्होंने "हम और नहीं मिलेंगे .... तुम्हारे प्यार मेंं कोई कमी नहीं थी.... बस मेरी खामियों को छुपाना नहीं चाहता था ....."

हाथों मेंं मेरे कुछ कागज़ रह गयें थे .....सुमित के साथ दिन निकल गया था उस आकार के साथ जो कम रोशनी मेंं साया सा नज़र आया था ...... सालों बीत गयें ......

दरवाजे पर विंडचाइम की आवाज़ आज भी दिल की धड़कन बढ़ा देती है .....जानती हूँ ...अंधेरे मेंं कई साये छुप जातें हैं ...गुजरता वक्त जो ले जाता है वापस नहीं देता .... फिर भी जमी हुई मोम को सहेज कर रखती हूँ ...बारिशों की रात के लिये ......


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