विश्वास
विश्वास
वह छुट्टियों में कुछ दिनों के लिए अपनी बहन के घर आई हुई थी l उसे आये हुए 10-15 दिन हो गए थे यहाँ... तभी उसकी बहन आई और बहुत ही खुश होते हुए बोली.. पता अभी घर से पापा का फ़ोन आया था वो उनके यहाँ शगुन रख आए है... तुम्हारा रिश्ता पक्का हो गया है l
वह ये सुनकर स्तब्ध रह गयी और उसकी आँखों से अविरल आँसुओं की धारा बह निकली l वह लगातार रोए जा रही थी और वह प्रयत्नपूर्वक उन्हें रोकने का प्रयास भी कर रही थी, पर सारे प्रयास विफ़ल थेl वह स्वयं ये समझने की चेष्टा कर रही थी कि जो क्षण किसी लड़की की जिंदगी का खुशी भरा, सबसे सुन्दरतम क्षण होता है l उस पर उसके मन की ऐसी प्रतिक्रिया क्यों?
उसकी बहन ने भी पूछा - अरे! क्या हुआ तुम्हें ..क्यों रो रही हो ?
उसने अपने आँसू पोंछकर कहा - पता नहीं .. ऐसे ही रोना आ गया l
उसके मन का कोई अटल कोना, जो शायद हिल गया थाl उसकी जिंदगी का सबसे बड़ा फ़ैसला उसे बिना बताए बिना प्रश्न किए.... कैसे ले लिया गया l
वह भी इस समय ,जब वह पढ़ रही है, आगे और भी पढ़ना चाहती है l उसकी उम्र भी ज्यादा नहीं,18 साल की थी जब वह देखने आए थे, अभी 19 की ही तो है l एक डेढ साल से बात चल रही है ,कई कमियाँ थी उस रिश्ते में... लड़का ज्यादा पढ़ा लिखा भी नहीं था, मना करने के बावजूद भी वह लड़के वाले पीछे पड़े हुए थे l "पीछे पड़े हुए" से ही समझ गए होगे की....लड़की बहुत सुन्दर भी थी l लड़के वालों की सिर्फ एक ही मुख्य विशेषता थी कि वह पैसेवाले और बिना दहेज के शादी करने के लिए तैयार थे l
उसे आशंका तो थी कि घर की स्त्रियाँ 'समझौतावादी' नीति पर मुहर लगाकर विचार करके हाँ कह सकती हैं l पर उसे अपने पापा के ऊपर पूरा भरोसा था.. चाहे कुछ हो जाए उसकी मर्जी के बिना कोई भी फ़ैसला नहीं किया जाएगा l
ये विश्वास यूँ ही नहीं बन जाता, एक बेटी का अपने पिता पर, वह पिता जिसने कभी ना नहीं कहा किसी भी बात के लिए, वह जिसने कभी लकीर नहीं खींची एक लड़का या लड़की होने की l जिसने कभी ये प्रश्न नहीं उठाए की तुम ये कर सकती हो और ये नहीं l उन्होंने कभी ये नहीं सिखाया कि ये सही ये गलत, बल्कि ये सिखाया कि तुम्हारा नजरिया सही है, तो तुम हमेशा सही ही चुनोगी l जिसने हर फ़ैसला लेने की आजादी दी.. वह ऐसा कैसे कर सकते हैं
जब ये रिश्ता आया तो सभी ने इसके लिए मना कर दिया था क्योंकि सभी का ये मानना था कि भविष्य में जो हुआ वैसी ही गलती फ़िर से ना दुहराई जाए l मतलब कही न कही सभी जानते थे... ये रिश्ता सही नहीं है l पर फ़िर भी उसके बारे में सोचा जा रहा था l
घर की परिस्थितियों से वो भी वाकिफ़ थी, पर उसे अपने पापा पर पूरा विश्वास था l यदि इस पर फ़ैसला लेने की स्थिति बनी, जो शायद वह भी समझ रही थी कि ऐसी स्थिति आयेगी ही... क्योंकि वह सभी की आखिरी जिम्मेदारी जो थी l पर वह निश्चिंत थी.. .कि पापा उससे जरूर पूछेंगे l
आज शायद वह विश्वास हिल गया था उसका l ऐसा नहीं था कि वह कुछ कर नहीं सकती थी.. उसे उम्मीद थी कि वह थोड़ा बहस और शोर करके शायद ये सब टल जाए, पिता उसे समझ जाएंगे l
लेकिन अभी उसका विश्वास जो बिना कहे आँखों से बह गया था l उसके मन ने ये गवारा ना किया शायद ..वो इस भ्रम को तोड़ना नहीं चाहती थी l इसलिए वो उठी और मुस्कराते हुए नीचे पहुँच गई, सबकी बधाइयाँ लेने के लिए l
क्योंकि अब वह फिर एक विश्वास को नहीं तोड़ना चाहती थी.. जो पिता का उस पर था l