Sarita Kumar

Romance

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Sarita Kumar

Romance

विवाह

विवाह

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उस रात लग्न मंड़प पर स्नेहा के गठबंधन से पहले जब पंडित जी उसके द्वारा अब तक के लिए गए संकल्प, व्रत, वादा, इरादा और सभी व्यक्तिगत इच्छाओं की आहुति मांगी। सब से निवृत्त होकर तन मन को स्वच्छ करने के पश्चात गठबंधन के लिए तैयार किया गया था। स्नेहा ने सब कुछ त्याग दिया उसी क्षण और हामी भरी थी उसके आंचल के कोर में पान सुपारी फूल अक्षत द्रव्य और मंत्र के साथ एक अजनबी के दुपट्टे से गठबंधन कराया गया और हो गया सात जन्मों का अनुबंध। बधाईयां, शुभकामनाएं और मंगलकामनाएं दी गई और स्नेहा विदा होकर नये जमीन, नई मिट्टी, नये वातावरण में रोप दी गई उर्वरक जमीं पाकर पल्लवित-पुष्पित होकर विशाल वृक्ष बन कर फूल फल हरियाली और छाया देने लगी। हर साल तीज और वट सावित्री पूजा में पूरी निष्ठा और श्रद्धा के साथ अपने रिश्तों के गांठ को मजबूत करने के लिए निर्जला व्रत रखती और आश्वस्त हो जाती अपने दाम्पत्य जीवन के प्रति। 

साल दर साल गुजरता हुआ चार दशक बीत गया। बेटा बहू, बेटी दामाद, नाती पोतों से घर गुलज़ार हो चुका था। बच्चों का खुशहाल जीवन देखकर स्नेहा का मन पुलकित हो जाता। अक्सर फुर्सत के लम्हों में अपने पति से कहती है कि "मैं दुनिया की सबसे खुशनसीब इंसान हूं जिसे जीते जी दुनिया की सारी नेमतें हासिल हुई। मनचाहा पति, आज्ञाकारी बच्चें, सुलझे विचारों वाले परिवार के लोग। सब कुछ कितना सुखद, खुशनुमा और संतोषजनक है।

अक्सर बातें करते समय अपने आंचल के कोर पर अपनी उंगलियों पर लपेटती हुई गांठ बांध लेती थी। आज भी उसने ऐसा ही किया, यह देखकर अभय ने पूछा यह गांठ क्यों बांधा ? स्नेहा ने चौंकते हुए कहा कहां बांधा गांठ ? अभय ने आंचल उठाकर दिखाया यहां बांधा देखो। ओह, सॉरी पता नहीं क्यों ? मुझे आदत हो गई है पता नहीं कब से ? मुझे पता है कब से आदत पड़ी है। अच्छा कब से बताइए तो ? बताऊं, जब तुम कॉलेज में पढ़ती थी यही कोई 40/50 वर्ष पहले जब तुम छत के मुंडेर पर बैठी थी शाम का वक्त था, मौसम सुहाना था तुम मुझसे थोड़ी दूरी बैठ कर बातें कर रही थी अचानक हवा का एक तेज झोंका आया और तुम्हारा गुलाबी दुपट्टा उड़ कर मुझे छू लिया था। याद है तुमने झट से दुपट्टा समेट कर उसके कोर पर गांठ बांध लिया था। शायद मेरे स्पर्श को सहेज कर रखना चाहती थी।

तुम्हें यकीन नहीं था न, कि मैं लौटकर आऊंगा और हमेशा हमेशा के लिए तुम्हारा हो जाऊंगा। स्नेहा भावुक हो गईं और अभय के बेहद करीब आ गई। सचमुच मेरे लिए यह सपना जैसा ही था। मैंने बहुत दिल से चाहा था आपको मगर यह कैसे मुमकिन हो पाया आज तक समझ में नहीं आया। आपने मेरे मन को पढ़ा समझा और पहल भी की वरना मैं तो कभी भी इज़हार नहीं कर पाती। मां पापा और भैया लोग के सामने कभी नहीं कह पाती कि आपसे प्यार करने लगी हूं और आपके साथ जीवन बिताना चाहती हूं। थैंक्यू, आपने मेरी जिंदगी को खुशहाल बनाया और मुझे तृप्त किया। मेरी कोई भी इच्छा, आकांक्षा, चाहत, तमन्ना और ख्वाहिश बाकी नहीं रही। मेरा सुखी संसार हमेशा हमेशा गुलज़ार रहे मेरे बच्चें सुखी, सम्पन्न और समृद्ध रहें बस इसी कामना के साथ एक दिन लम्बी चादर ओढ़ कर सो जाना चाहती हूं आपके आगोश में।

बस बस चुप हो जाओ ऐसी बातें मत किया करों। अभी तो आशिकी के दिन याद कर रही थी। अचानक से गंदी गंदी बातें क्यों करने लगी। अभी तो हमारा गोल्डन जुबली मैरिज एनिवर्सरी मनाना बाकी है। सोने की पालकी में बिठा कर लाऊंगा तुम्हें। बस तुम उसी तरह बैठी रहना छत के मुंडेर पर और अपनी उंगलियों पर दुपट्टा लपेटते रहना।... अभय की बातें सुनकर स्नेहा सा चेहरा लाज की आभा से दमकने लगा। शादी के 48 वर्ष बिताने के बाद भी स्नेहा ने स्त्री का अनमोल आभूषण संभाल के रखा है। अभय उनकी इसी अदा पर तो फ़िदा रहते हैं। अभय ने देखा 11 बज चुके थे स्नेहा को दवा देनी थी झट से उठकर दवा और गुनगुना पानी लेकर हाजिर हुए। थोड़ी मायूसी के साथ स्नेहा ने दवा घोटी और तकिया संभाल कर लेट गई बराबर में, लेकिन नींद नहीं आ रही थी।

जाने क्यों कॉलेज का जमाना बहुत याद आने लगा था। उस वक्त कभी सोचा नहीं था कि जिसे मजाक मजाक में ही कहा था कि मुझसे इतना कतराते हैं मतलब नफ़रत करते हैं कहीं ऐसा न हो जाए कि आठों पहर मेरा ही दीदार होता रहें और आप चिढते जलते कुढ़ते रहें और मैं यूं ही खिलखिलाती रहूं आपको देखकर ? तब मेरी बातों को सुनकर भी अनसुनी कर दिया था। फिर न जाने कैसा जादू चल गया कि एक दिन खुद ही पैगाम भेजा और घर वालें भी मान गए चट मंगनी पट ब्याह और मैं उड़ चली सात समंदर पार अपने साजन के साथ।.... 

अभय को भी नींद नहीं आ रही थी उन्होंने करवट बदली और दोनों हंस पड़े बेसाख्ता।.... स्नेहा को शरारत सूझी उसने आंचल के कोर को उंगलियों पर लपेटने लगी फिर बांधी एक गांठ अपने दांपत्य जीवन के अप्रतिम प्रेम को अमरत्व देने के लिए।

आज समझ आया शादी में गठबंधन क्यों महत्वपूर्ण है। यूं तो कहते हैं कि गांठ पड़ना कहीं भी अच्छा नहीं होता, किसी के मन में कोई गांठ बंध जाएं तो दूरियां लाती है और हमेशा हमेशा के लिए निशान रह जाती है. मगर यही गांठ जब दो अजनबियों के बीच बांधी जाती है लग्न मंडप पर तो गठबंधन कहलाता है और उसे बेहद पवित्र और अटूट बंधन माना जाता है। मिन्नतें की जाती है कि यह बंधन ना टूटे, यह गांठ ना खुले। दूरियां आ जाएं चाहें मीलों की मगर जुड़ाव और खींचाव बना रहे एक दूसरे के प्रति। युगल जोड़ी की सलामती की जिम्मेदारी उस गांठ पर सौंपी जाती है।


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