ऐसा सयानों ने कहा है जैसे उनके दिन फिरे सबके फिरे। ऐसा सयानों ने कहा है जैसे उनके दिन फिरे सबके फिरे।
मैं अकेला चला था, अकेला चलूंगा... शायद ईश्वर भी यही चाहते हैं। मैं अकेला चला था, अकेला चलूंगा... शायद ईश्वर भी यही चाहते हैं।
कितना लिखूं, क्या-क्या लिखूं ? कितना कुछ है लिखने को। कितना लिखूं, क्या-क्या लिखूं ? कितना कुछ है लिखने को।
इस लिए मुहावरा कहा जाता है कि कोयले के काम में हाथ काले हो ही जाते हैं। इस लिए मुहावरा कहा जाता है कि कोयले के काम में हाथ काले हो ही जाते हैं।
आज दशकों बाद राजगीर से जुड़ी यादें अक्सर दिमाग में कौंध जाती है और फिर रोना आ जाता है, लगता है एक खूब... आज दशकों बाद राजगीर से जुड़ी यादें अक्सर दिमाग में कौंध जाती है और फिर रोना आ जात...
अध्याय – 10 लेखक : अलेक्सांद्र पूश्किन ; अनुवाद : आ. चारुमति रामदास। अध्याय – 10 लेखक : अलेक्सांद्र पूश्किन ; अनुवाद : आ. चारुमति रामदास।