वास्तव में सोचने वाली बात है, हम कितना ही ऊंच-नीच मान लें, अंत में उसी अग्नि से इस शरीर वास्तव में सोचने वाली बात है, हम कितना ही ऊंच-नीच मान लें, अंत में उसी अग्नि से ...
लेखक: सिर्गेइ पिरिल्यायेव अनुवाद : आ. चारुमति रामदास लेखक: सिर्गेइ पिरिल्यायेव अनुवाद : आ. चारुमति रामदास
" तू काहे रोती है, पगली ! सुहाग की निशानी साथ लेकर जाऊँगी।" " तू काहे रोती है, पगली ! सुहाग की निशानी साथ लेकर जाऊँगी।"
लगता है मेरी बधाइयाँ आपको अच्छी नहीं लगीं, मगर मैं भी क्या करूँ, मजबूरी है, लगता है मेरी बधाइयाँ आपको अच्छी नहीं लगीं, मगर मैं भी क्या करूँ, मजबूरी है,
रुक्मणी ने राधा जी से पूछा देवी आपके पैरों में छाले कैसे पड़े रुक्मणी ने राधा जी से पूछा देवी आपके पैरों में छाले कैसे पड़े
भविष्य में धानी और उसकी सास के संबंध बेहतर होने के द्वार भी खुले रखे। भविष्य में धानी और उसकी सास के संबंध बेहतर होने के द्वार भी खुले रखे।