क्या खोया, क्या पाया
क्या खोया, क्या पाया
क्या खोया, क्या पाया यह सोच के रोया
बना दूं किस्मत किसी की
किसी को दे दूं हंसी
किसी को उठना बैठना सीखा दूं
दूसरों को खुश रखने अपने को भुलाया
क्या खोया, क्या पाया यह सोच के रोया
पल पल जाग कर करना काम किसी का
क्या हुआ कारण हुई लेट सोच कर मरना किसी का
अपनों से बढ़ कर रखना ख्याल किसी का
सब रिश्तों में रखना उपर रिश्ता किसी का
क्या खोया, क्या पाया यह सोच के रोया
अपने लिए मेहनत करता तो आज कुछ और होता
लड़ता पहले दिन से अपने लिये तो आज अंजाम कुछ और होता
बन रहा था भगवान, सिर्फ इंसान रहा होता तो आज कुछ और होता
जलाया चूल्हा किसी और का, खुद का जलाया होता तो आज कुछ और होता
देने चला था दूसरों को खुशी, खुद के लिए एक कदम भी बढ़ाता तो आज कुछ और होता
क्या खोया, क्या पाया यह सोच के रोया ।।