अपना घर
अपना घर
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आंगन स्वर्ग सा है मेरा,
खट्टी मीठी तकरार का डेरा।
इक दूजे से चाहतों का फेरा,
अपनो पर टिका है जीवन मेरा।।
एक आहट को तरसती अँखियाँ है,
उम्मीदों पर है तात का जीवन ,
इस अंधियारे की भागमभाग में
मात पिता है बस मेरी खुशियाँ।।
कभी खुद से, कभी अपनो से,
कभी अभावों से, कभी दुखों से,
बढ़ती रहती है उलझने।
मैं सज्जाता सदैव घर मेरा,
मीठे मीठे सुखद सपनो से।।
राहों में रोड़े आते है,
मेहनत से मंजिले पाते है।
गर गमो में हँसना सीखें
चंहु और खुशियाँ पाते हैं ।।