तुम अजनबी
तुम अजनबी
ऐ अजनबी जब से मिले हो जीवन की बाती बन गए हो,
धीमे से आकर व्याकुल मन के जीवन साथी बन गए हो,
तुम बिना पत्थर- सा मौन रहकर पत्थर-सा निष्प्राण था,
तुमसे मिलकर जीवन मिला तुम ही अरमान बन गए हो,
तुम्हारे छू देने से ही मन मेरा चंदन बनकर महकने लगा,
तुम मांझी तुम्हीं किनारा तुम जीवन के प्राण बन गए हो,
तुम्हारी सूरत तुम्हारी वो आवाज मेरे जहन में बस गई है,
लगता जैसे मेरी हर शिकायत का तुम जवाब बन गए हो,
पहले हर सुबह जिंदगी सुलगती हुई यादों में कट रही थी,
करवट बदलते तो लगता जिंदगी की किताब बन गए हो,
जग की रीति निभाने के लिए दिल का सौदा हार चुके थे,
प्रीत जगाकर मन में तुम जीवन का उल्लास बन गए हो,
तुम बिन सूना जीवन तब दिशाओं में गुप्त रहने लगा था,
तुमसे मिलकर आया होश अब तुम आकर्षण बन गए हो,
अब तो हर सुबह महकती है और शाम बहकती रहती है,
घने बादलों में रिमझिम से बरसते हुए बरसात बन गए हो I