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Usha Gupta

Others

4.7  

Usha Gupta

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यादों के झरोखे से

यादों के झरोखे से

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मस्तिष्क और हृदय में 

अलग स्थान बना लेती हैं 

चन्द बेश़कीमती यादें,

झांकती रहतीं जो समय-समय

यादों के झरोखे से।

चाचा नेहरु से मिलने की अमूल्य निधि,

झांक रही है आज हो आतुर,

बाहर आने को धर शब्दों का आकार।


विद्यालय में हम बालक करते प्रतीक्षा बाल दिवस की उत्सुकता से,

होता प्रतिवर्ष आयोजन

रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम का।

लिया भाग मैनें समूह लोक नृत्य में,

धर रूप युवक का।

चल रहा था अभ्यास प्रति दिन।


दौड़ पड़ी लहर प्रसंन्नता की विद्यालय में,

मिला था निमंत्रण करने को प्रस्तुत,

सांस्कृतिक कार्यक्रम तीन मूर्ति भवन में,

चाचा नेहरू के जन्मदिवस के उपलक्ष्य में,

करने लगे अभ्यास नई स्फूर्ति व उत्साह से,

सिलवाये गये परिधान आकर्षक,

आधार पर भूमिका के,

हुई पूर्ण तैयारी जाने की घर चाचा नेहरू के।


पहुँच ही गये तीन मूर्ति भवन,

हुआ स्वागत मंडली का हमारी,

की होगी प्रतीक्षा चन्द घड़ी ही,

कि हुए दर्शन चुम्बकीय व्यक्तिव के,

हो गया जो अंकित मन मस्तिष्क में,

सदा-सदा के लिये।

मिली आज्ञा चाचा से करने को,

प्रारम्भ कार्यक्रम लोक नृत्य का,

प्रस्तुत किया हमने नृत्य पूर्ण लगन से।


हर्षित हुए चाचा नेहरू प्रस्तुति से,

थपथपाई पीठ मेरी चाचा ने,

फिर पकड़ उँगली मेरी ले चले,

बगिया में बने चिड़िया घर की ओर,

थे अनोखे-अनोखे पक्षी जहाँ,

देख उन्हें हुआ अचरज बड़ा,

परिचय कराया बड़े प्रेम से चाचा ने,

बसने वाले वहाँ के एक-एक पक्षी से।


आ पहुँची थी घड़ी अब बिछड़ने की चाचा से,

हुए विदा भारी मन से कर संचित हर वो पल,

बिताये जो चाचा नेहरू की अमिट छवि के संग,

बीत गये वर्ष अनगिनत परन्तु,

है ताज़ी हैं यादें मन-मस्तिष्क में

इतनी,

ज्यों हो बात कल ही की,

और क्यों न हो, है यह अमूल्य निधी,

मेरी यादों के ख़ज़ाने की।।

 


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