चंद्रमा हमारी माता
चंद्रमा हमारी माता
जाने कितने जन्म हुए हमारे और आगे जाने कितने होंगे।
हम तो हैं अनभिज्ञ इस विषय में लेकिन सूरज और चंदा तो जानते होंगे।
यूं ही तो नहीं कहते सूर्य को पिता और चांद को माता।
कर्म पथ पर अग्रसर होना यह तो सूरज ही सिखलाता।
थक कर जब हम चूर हो जाए तो शीतलता देती चंदा माता।
चांदनी रात हो चांद को देखिए तो उद्विग्न मन भी शांत है हो जाता।
माता-पिता के जैसे ही सूरज और चांद जगत का पालन करते हैं।
एक समान रूप से वह सबके लिए ही धरती पर रोशनी करते हैं।
चांद की चांदनी जब चेहरे पर पड़ती है।
यूं लगता है माता अपना आंचल हमारे सिर पर ढकती है।
चैन की नींद में हर मानव सो जाता है।
सुबह सवेरे पिता आदित्य अपने रथ पर बैठकर आता है।
अपने सोने वाले सारे बच्चों के ऊपर से चांदनी की चादर हटाता है।
कड़क पिता कर्मों को करने के लिए अपने बच्चों को प्रेरित कर जाता है।
बस ऐसे ही जीवन का चक्र जाने कब से चला आता है।
सूरज पिता और माता चांद है।
हम सब बालक करते दोनों को प्रणाम है।