कहना तो यह भी था
कहना तो यह भी था
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इतने दिनों बाद मिले हम
बहुत कुछ कहना था
पर इस तरह अचानक मिलने पर
समझ नहीं आया
कि क्या कहें
दो पक्षियों की तरह थोड़ी बात करें
इसलिए कहा
बहुत ठंड पड़ रही है न आजकल
जबकि मुझे पूछना था
हम दोनों के बीच
इतनी खुश्की कैसे आ गई?
मैंने दिखाई
अपने कामों की फेहरिस्त
और कितने सारे लोग जानते हैं मुझे यह भी बताया
पर मुझे
मेरे मन का सूनापन
तुम्हें दिखाना था
लगा तो ऐसे भी था
कि हम मिलाए अपने हाथ
आम और पीपल की शाखाओं की तरह
पर हम तने रहे
एक-दूसरे के सामने अशोक के वृक्ष की तरह
ऐसे मिले हम
जैसे मिलते हैं दिन और रात
और फिर चल पड़े
अपने-अपने रास्तों पर।