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V. Aaradhyaa

Inspirational

4.5  

V. Aaradhyaa

Inspirational

सरकारी स्कूल में पढ़ती हूँ तो-2

सरकारी स्कूल में पढ़ती हूँ तो-2

11 mins
460



आज सुबह से उसने खाना भी नहीं खाया था ।और ना अपने कमरे से बाहर निकली थी । ना जाने उसकी यह कैसी ज़िद थी कि, " बस...बहुत हो चुका , अब मैं अपना अपमान नहीं होने दूँगी। मैं भी खुद को बेहतरीन शिक्षा दूँगी !"

.

मेहनती तो वह थी ही , ऊपर से सरस्वती की कुछ ऐसी अनुकम्पा थी कि जो कुछ भी पढ़ती , उसे याद रह जाता था ।


 " आज तो हमारी लाडो चाय पर भी नहीं दिखी और ना नाश्ते पर और अब खाने के समय भी नदारद है । लगता है ... अभी तक पढ़ाई कर रही है !


पापा ने कहा तो मम्मी मुस्कुराते हुए बोली ,

 " आपकी लाडली पढ़ाई में ऐसी डूबी हुई है कि , ज़ब मैं उसे चाय नाश्ता कमरे में देने गई तो हाथ के इशारे से ही बोली , कि सब टेबल पर रख दो , और फिर पढ़ने में लग गई !"

अब तक दादी भी खाना खाने आ गई थी । और कुछ गर्व से बोली ,"मेरी लाडली तो मुझे सुबह-सुबह आकर पैर छूकर प्रणाम करके गई है और यह भी कह कर गई है कि 'दादी !आशीर्वाद दो कि मेरा नए स्कूल में एडमिशन हो ही जाए!"


अब तक चुप बड़ी बहन मोनिका भी बोल पड़ी ,


"समझ नहीं आता कि , ये सोनी को कैसी धुन चढ़ी है , वरना हमारे पुराने शहर का वो स्कूल तो बढ़िया ही था । आखिर भैया और मैं भी तो उसी स्कूल से पढ़कर निकले हैं। यहां का रेलवे स्कूल सिर्फ दूर ही तो है। बाकी तो कोई प्रॉब्लम नहीं है। फिर क्या है .... इसकी जिद कि...

मुझे पब्लिक स्कूल में ही पढ़ना है !"


खैर ... बातों का रुख फिर से बदलते हुए देखकर पापा ने सोचा कि...


बच्चे फिर से किसी विवाद में ना पड़ जाएं... इसलिए उन्होंने अपने बड़े बेटे चीनू से कहा ,


"जा बेटा ! सोनी को बुला ला!"


तब चिन्मय यानि कि चीनू .... सोनिका यानि सोनी के कमरे में गया और उसे आवाज लगाई ,


" सोनी तू कहां है जल्दी आओ ,पापा तुम्हें बुला रहे।


" भैया ! आप तो सब कुछ जानते हो , फिर बार-बार क्यों पूछते हो ?


अबके सोनिका थोड़ी थोड


 "आप समझते क्यों नहीं ...! मैं सरकारी स्कूल में पढ़कर आई हूँ इसलिए पब्लिक स्कूल के बच्चे मुझसे बात नहीं करते और ना ही दोस्ती करना चाहते हैं!


और...आखिर सोनिका ने अपने मन की बात कह ही दी।


तभी चिन्मय ने गौर किया कि ...

सोनिका की आंखों में आंसू आ गए थे।


वह लगभग रोते हुए बोली ,


 " बात तो यह है भैया कि .... वह छोटी जगह थी। इसलिए वहां के लोग कुछ नहीं समझते थे। यहां के बच्चे बहुत भेदभाव करते हैं। सरकारी स्कूल वाले से ना तो दोस्ती करते हैं ना बात करते हैं। और एक तरफ से हमें बहुत कमतर समझते हैं !"


तब चिन्मय ने सोनी को बड़े प्यार से समझ आया कि ...


"देख सोनी!कोई भी स्कूल उतना अच्छा या बुरा नहीं होता। बाकी हम स्टूडेंट्स को बहुत मेहनत करनी पड़ती है। यह माना कि पब्लिक स्कूल में थोड़ा ज्यादा तामझाम रहता है, लेकिन फिर भी अगर हम कोशिश करें तो हम अपने आपको इंप्रूव कर सकते हैं।


तुझे क्या लगता है.... मुझे यह सब नहीं झेलना पड़ा होगा? "


"पर...भैया आप तो इतने बड़े शहर के बड़े इंस्टिट्यूट से इंजीनियरिंग कर रहे हो। और आपका परफारमेंस भी अच्छा है और रैंक भी।


वैसे भी ... अब तक किसी को थोड़ी ना याद रहा होगा कि आप कहां से पास आउट हुए हो "


" यही.... तो वो बात है ... सोनी ! जो मैं तुम्हें समझाना चाहता था। कि ओवर ऑल बात हमारी मेहनत और ग्रहण करने की क्षमता पर निर्भर करता है।

हाँ ... यह बात ज़रूर है कि ... अच्छे स्कूल कॉलेज में पढ़ने से फाउंडेशन अच्छी हो जाती है। पर सिर्फ किसी को मानकर नहीं चलना चाहिए हमारी मेहनत भी और हमारा जज्बा भी हमारा फ्यूचर बदल सकता है!"


"अपनी तरफ से मेहनत तो मैं कर ही रही हूं भैया!


अब सोनिका की आवाज़ में गुस्सा कुछ कम हो चला था । जैसे कि ..... वह अपने चिन्मय भैया की बात समझने की कोशिश कर रही थी।


जब चिन्मय ने देखा कि...

सोनिका उसकी बात सुन रही है तो उसने आगे कहा ....


 " पता है सोनी! मुझे भी शुरू शुरू में इंजिनियरिंग कॉलेज में यह चीज फेस करना पड़ा था... कि मेरी इंग्लिश अच्छी नहीं थी और बाकी बहुत सारे स्टूडेंट्स अभिजात्य वर्ग से आते हैं। और पब्लिक स्कूल से पढ़कर भी आए हैं। लेकिन मेरा फाउंडेशन अच्छा था और उनके बीच मैंने अपनी मेहनत से वहां पर अपनी पहचान बनाई। और जो भाषा की समस्या थी तो मैंने इंग्लिश स्पीकिंग कोर्स भी किया और अब मैं उन लोगों से ज्यादा अच्छा स्कोर कर पाता हूँ। और रही बात भाषा की तो अब अंग्रेजी भाषा पर भी मेरा कमांड हो गया और साथ में मेरी नॉलेज भी बढ़ गई। इतनी मेहनत करने की वजह से मुझे अपनी क्षमता का भी पता चल रहा है!


सो... एक बार अपने बारे में अच्छी तरह सोच ले...कि....


तू अगर सिर्फ इंग्लिश मीडियम में पढ़ना है....बोल करके तू अगर प्राइवेट स्कूल में जा रही है या लोगों को दिखाने या इम्प्रेस करने जा रही है तो.... मैं तो कहूंगा... तू गलती कर रही है। क्योंकि तुझे ऐसे लोग तो हर जगह मिलेंगे जो तुझमें कोई कमी निकाल कर तुझे नीचा दिखाने की कोशिश करेंगे... फिर तू लोगों के हिसाब से कितना बदलोगी...?


बात कुछ कुछ सोनिका की समझ में तो आ रही थी ... लेकिन अभी भी वह छोटी सी जिद पकड़े बैठी थी कि उसे तो उसी स्कूल में पढ़ना है। इसलिए बोली,


" नहीं भैया! मैंने बहुत सह लिया। अब मैं सरकारी स्कूल में पढ़ कर अपनी और बेइज़्ज़ती नहीं कराऊंगी "


सोनी की बात सुनकर चीनू सोचने लगा कि ...


 यह भी एक तरह से सोनी की गलतफहमी है कि ... क्योंकि सरकारी स्कूल में पढ़ाई अच्छी नहीं होती है या वहां के बच्चों की इंग्लिश कमजोर होती है । यह तो कुछ समझ का फर्क है।


और वह किसी तरह से अपनी बहन को समझाना चाहता था पर, सोनी कुछ भी समझने को तैयार हो तब ना ....?


लेकिन..... सोनी ने सोच लिया था कि ....


अब बस ....वह सातवीं तक सरकारी स्कूल में पढ़ चुकी है। अब तो उसे बस पब्लिक स्कूल में पढ़ना है ।


वह प्राइवेट स्कूल में पढ़ कर अपनी इंग्लिश अच्छी करना चाहती थी और अपना इंप्रेशन भी अच्छा बनाना चाहती थी। क्योंकि वह जितने भी साल सरकारी स्कूल में पढ़ती रही, उससे पब्लिक स्कूल वाले बच्चे दोस्ती करते ही नहीं थे। और कहीं ना कहीं उसे दोयम दर्जे का एहसास होता था


दरअसल...

गौतम जी की सरकारी नौकरी चाहिए और उनका तबादला भी ऐसी ही छोटी जगह में होता था। उनकी नौकरी सिंहभूम जिले में थी तो उनका तबादला भी आसपास ही होता रहा था।परिवार में पत्नी शांति और उनकी मां आशा जी और उनके तीन बच्चे थे।उनका सबसे बड़ा बेटा चिन्मय इंजिनियरिंग कर रहा था और और बड़ी बेटी मोनिका यानि मोनी बारहवीं का इम्तिहान देकर आई थी और आगे की पढ़ाई के लिए रिजल्ट का इंतजार कर रही थी।


गौतम जी की रेलवे की सरकारी नौकरी होने की वजह से अब तक उनके बच्चे सरकारी स्कूल में पढ़ते रहे थे। लेकिन अब सिनी से सरायकेला ट्रांसफर आने के बाद जब सोनिका जो सातवीं कक्षा में थी...उसे सरायकेला के स्कूल में एडमिशन दिलवाना था।


कॉलोनी के बच्चे ठीक से बात नहीं कर रहे थे और उसे बार-बार इस बात का एहसास कराया जा रहा था कि वह सरकारी स्कूल में पढ़कर आई है इसलिए उन लोगों से इतर है। इसीलिए वह उन लोगों से कम है इसी बात को उसने अपने मन में जिद बना लिया था कि... अब चाहे जो हो जाए, वह भी पब्लिक स्कूल में पढ़ेगी


 वैसे तो सरकारी स्कूल के बच्चों का एकदम से प्राइवेट स्कूल में एडमिशन होना मुश्किल था।

पब्लिक स्कूल में इंग्लिश मीडियम था और सरकारी स्कूल में ज़्यादातर हिंदी का ही प्रयोग किया जाता था । पर चुंकि क्योंकि गौतम जी की सरकारी नौकरी थी इसलिए उनको यह सुविधा मिली हुई थी।


कल उसका एडमिशन टेस्ट होना था। वह पूरे लगन से आठवीं कक्षा में एडमिशन की तैयारी कर रही थी ।


और....फिर अगले दिन ज़ब सोनिका का पब्लिक स्कूल में इंटरव्यू चल रहा था तो उसने बड़ी आत्मविश्वास से सवालों का जवाब दिया और उसका एडमिशन कंफर्म हो गया।


घर आकर ज़ब यह खुशखबरी पापा ने सब को बनाया तो सब बड़े खुश हो गए ... सिर्फ मोनिका को छोड़कर।


मोनिका भी सरकारी स्कूल में पढ़ कर आई थी और हमेशा अच्छा ही करती रही थी। उसके मन में इस बात को लेकर भी कोई कॉम्प्लेक्स नहीं था कि वह कहां से पढ़ कर आई है। बस उसे इतना पता था कि...मेहनत करनी है और आगे बढ़ना है।

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इसके अलावा मोनिका यह भी जानती थी कि... उसके पिता की सीमित आय में सबको पब्लिक स्कूल की मोटी फीस देना संभव नहीं होगा और जब सरकारी स्कूल की सुविधा मिली हुई है तो क्यों किसी और स्कूल में पढ़ना...?


मोनिका भी चिन्मय की तरह अपनी बहन सोनिका की भलाई चाहती थी। लेकिन वह सही तरीके से अपनी बात उसको समझा नहीं पा रही थी।


मोनिका को शुरू से लग रहा था कि...


सोनिका गलत कर रही है। क्योंकि बात सिर्फ स्कूल की नहीं है कि सरकारी स्कूल कौन सा है। और सोनिका सरकारी स्कूल ना जाकर पब्लिक स्कूल में क्यों जाना चाह रही है।


बात तो यह है कि...


सोनिका जिस वजह से पब्लिक स्कूल जा रही थी, वह वजह सही नहीं थी। क्योंकि वह सब दिखावे की वजह से जा रही थी और बाहर के लोगों के कमेंट्स की वजह से । वह पब्लिक स्कूल में पढ़कर अपने आप को उनके बराबर समझना चाहती थी... और मोनिका की नज़र में यही सोने का की गलती थी।


खैर... जब सोनिका अपने पापा के साथ एडमिशन की खुशखबरी लेकर हँसते हुए आई दिया तो ऊपर से मोनिका भी खुश ही हुई।


जब वह दादी के पास आई तो दादी ने कहा ,

" चलो बेटा ! सबसे पहले ठाकुर जी के सामने हाथ जोड़ो और उन्हें प्रणाम करके धन्यवाद दो!"


गौतम जी सोनिका के इंटरव्यू में सफल होते हुए देखकर आते हुए मिठाई लेकर आए थे । और तभी चिन्मय भी दौड़कर बाजार से समोसे ले आया था


थोड़ी देर बाद ...


ज़ब सारा परिवार बैठकर खुशी मना रहा था तब...


तभी शांति जी ने गौतम जी से पूछा कि ,


" आपने तो सब पता कर लिया है ना कि ... एडमिशन से लेकर बाकी चीज़ों में कितना खर्च आएगा...? नया यूनिफार्म .... नई किताबें और क्या-क्या खर्च लगेगा...? इसके साथ ही यहभी बता दीजिए कि...


क्या सोनिका कल से ही स्कूल जाना शुरू करेगी? या फिर किस दिन से जाएगी...? आप मुझे सब बता दीजिए ताकि मैं बिटिया की सारी तैयारी टाइम पर कर सकूं !"


उनकी बात सुनकर गौतम जी ने कहा कि,


" सोनिका को स्कूल कल से तो नहीं भेज पाएंगे क्योंकि मुझे थोड़ा इंतजाम करना है!"

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यह कहकर कर उन्होंने एक एक बड़ी सी लिस्ट शांति जी को पकड़ा दी


शांति जी अभी लिस्ट देख ही रही थी कि इन सब चीजों से अनभिज्ञ ठाकुर जी को प्रसाद चढ़ा कर सोनिका जब कमरे में आई तो उसने एक ऐसा ऐलान किया जिसे सुनकर सब आश्चर्य में आ गए।


सोनिका ने कहा...


" मैं कल तो क्या... आगे भी स्कूल में नहीं पढ़ने जाऊंगी । पापा ! आप मेरा स्कूल सरकारी स्कूल में करा दीजिए!"


किसी को समझ में नहीं आया कि ....


सोनिका ऐसा क्यों कह रही है...?


सोनिका ने जो वजह बताइ वह बहुत ही अलग सी थी और एक तरह से सराहनीय भी ।


उसने मिठाई का बड़ा टुकड़ा अपनी दादी के मुंह में रखा और उसके बाद सब को खिलाया।


फिर एक टुकड़ा खुद खाकर बड़े ही इत्मीनान से बोली ,


" आपलोग यह सुनकर बिल्कुल भी आश्चर्य मत करो कि मैं अब उस स्कूल में क्यों नहीं पढ़ना चाहती? "


अब माँ ने कुछ चिंतित होकर कहा ,


" हाँ... बेटा! हम यही तो जानना चाहते हैं कि जिस स्कूल में पढ़ने के लिए तुम इतनी जिद कर रही थी और अब ज़ब कि तुम्हारा इंटरव्यू में सिलेक्शन हो गया है और अब सिर्फ तुमको एडमिशन लेना है तो तुम इस समय स्कूल में एडमिशन लेने के लिए क्यों मना कर रही हो....? और दुबारा सरकारी स्कूल में क्यों पढ़ना चाह रही हो ? बताओ तो... इसके पीछे क्या वजह है ? "


सोनिका की बात सुनकर मोनिका थोड़ी आत्मग्लानि से भर उठी और उसने कहा ,


 " सोनी कहीं तुमने यह डिसिशन मेरी बात सुनकर तो नहीं लिया है ...? क्योंकि शुरू से ही मैं तुझे स्कूल बदलने और पब्लिक स्कूल में पढ़ने वाले आइडिया का विरोध कर रही हूं । मैं किसी स्कूल के खिलाफ नहीं हूं । बस मैं सिर्फ उस वजह से कनविंश नहीं हो पा रही थी , जिस वजह से तुम इस स्कूल में पढ़ना चाह रही हो।



बताओ ना... क्या बात है...?

अगर तुम मेरी वजह से यह निर्णय ले रही हो तो मैं अपने शब्द वापस लेती हूँ और तुमसे माफी मांगती हूँ !"



" अरे .... नहीं दीदी! यह बात बिलकुल नहीं है। बल्कि मैं तो आपकी शुक्रगुजार हूं कि आप मुझे हकीकत दिखाने की कोशिश कर रही थी !"


अब तक कुछ समझता या नहीं समझता कि... अचानक चिन्मय में को लगा कि उसने जो कल सोनी को समझाया था । कहीं उस वजह से तो सोनिका अपना इरादा नहीं बदल रही है...?


सो... वह भी अपनी सफाई में बोल पड़ा ...


"मुझे माफ कर दे सोनी मेरा यह मतलब नहीं था!"


 पर सोनिका ने कहा कि...


 "मैं चाहती थी कि एक बार देख लूँ कि मैं इंग्लिश मीडियम के लायक हूँ या नहीं हूं।


अब मेरा सिलेक्शन पब्लिक स्कूल में हो गया तो मैं समझ गई मैं किसी से कम नहीं हूं

अब मैं सरकारी स्कूल में पढ़ने को तैयार हूं । अब मुझमें पूरा आत्मविश्वास है कि मैं भी मोनिका दीदी और जिनमें भैया की तरह जिंदगी में आगे बढ़ो होगी और स्कूल चाहे कोई भी हो अपनी मेहनत से अपना नाम कमा आऊंगी!"

 अब घर में समझ गए कि सोने का नहीं स्कूल का एडमिशन टेस्ट क्यों दिया था तुम्हारा जानना चाहती थी कि सरकारी स्कूल में पढ़कर भी पब्लिक स्कूल के लायक है कि नहीं।



 अब सोनिका समझ गई कि स्कूल से ज्यादा छात्र की अपनी क्षमता निर्भर करती है कि उसे कितनी सफलता मिलेगी।




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