आ कुछ पल चलते हैं साथ
आ कुछ पल चलते हैं साथ
आ कुछ पल चलते हैं साथ
कुछ दूर कदम से
कदम मिलाकर
अपनों ,गैरों का
भेद भुलाकर
ताकि सह सकें
प्रकृति का निर्मम झंझावात
आ कुछ पल बैठतें हैं साथ
कुछ गुरुर अहम और
हर गम भुलाकर
ताकि कह सुन सकें
अंतर मन की बात
आ कुछ पल भूलते हैं जात
कुछ उसूल धरम से
आगे आएं अपने भरम से
कर सकें सार आत्मसात
ताकि न होऔर रक्तपात
आ कुछ पल भूलतें हैं औकात
देखें प्रकृति,और सोचें
उस प्रकृति नियंता को
कण कण में उसकी ममता को
ताकि संभाल सकें उसकी सौगात।
आ कुछ पल मिलाकर
चलते हैं हाथ
आ कुछ पल मिलाकर
चलते हैं हाथ।