असली खजाना
असली खजाना
सोच सोच का फर्क है
सबके अपने अपने तर्क हैं
हर कोई एक खजाना लिए बैठा है
दंभ में चूर अकड़ के अमचूर हुए बैठा है
कोई हुस्न के खजाने पर नाज कर रहा
कोई दौलत के खजाने पर डींगें भर रहा
किसी को ज्ञान के खजाने पर अभिमान है
किसी के सिर पर चढ़ा सत्ता का गुमान है
कोई बाहुबल के खजाने से राज करता है
किसी पे धूर्तता मक्कारी का साज सजता है
कोई कलम के खजाने पर ही मस्त हो रहा
कोई सब कुछ पाकर भी गमों में खो रहा
पर ये सब नकली हैं कोई असली खजाना नहीं
सब यहीं छूट जायेगा साथ किसी के जाना नहीं
प्रेम का खजाना ही दुनिया में सच्चा खजाना है
बस वही धनवान है जो प्रेम में पागल है दीवाना है।