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Aishani Aishani

Romance

4  

Aishani Aishani

Romance

अतीत हूँ मैं..

अतीत हूँ मैं..

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वो तुमसे

जब पूछे कौन हूँ मैं? 

तुम उससे कह देना

अतीत हूँ मैं तुम्हारा..! 

हाँ..! 

वही अतीत 

जिसे मैंने कभी अपना 

तपस्थली बनाना चाहा था, 

किंतु.., 

वो किसी और के यादों को

समेटे हुए थी स्वयं में..! 

आज मिली भी तो 

कैसी खण्डहर सी दिखती है

किन्तु /

अब तप का कोई इरादा नहीं मेरा /

माना कि तप के लिये 

नितांत आवश्यक है एकांत

फिर चाहे वह खण्डहर हो /

नदी का तट हो /

या फिर.. /

वियाबान जंगल! 

किन्तु.. 

तप का मेरा कोई इरादा नहीं

तुम शांतचित्त रहो /

मैं दुनिया के प्रपंचों /

मोहमाया के जाल में उलझा हुआ हूँ! 

वो आज भी

किसी के यादों को समेटे है स्वयं में /

रास्ते अतीत में भी अलग थें

आज भी अलग ही हैं

हाँ.... 

संयोग वश इधर आना हुआ

मेरा वर्तमान तुम ही हो! 

और इतना कहकर 

तुम भी इक लम्बी सांस लेना चैन की!!! 

हहहहह! हहहहहह! 

अतीत...! 

जो कभी तुम्हारी थी ही नहीं

ना ही किसी और की थी. .!!


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