बरसती उमंग
बरसती उमंग
चहरे पे ठहरे
कुछ बारिश की बूंदों को
गिले बिखरे
बालों का वो चूमना
बेछूट बरसते
पानी की मदहोशी को
अंगों का
लिपट-लिपटकर वो झूमना
नशे के आलम में ही
खोए रहने दो मुझको
बेहोशी की धुंद से
कोई ना जगाना...
कानों में गूंजती
बरसात की साज़ को
दिल का अपनी
धून बना के वो घुलना
तेज़ हवाओं संग
सरसराती धाराओं को
बंद आंखों का
महसूस कर वो झूलना
भीगे मौसम में ही
डूबे रहने दो मुझको
बहकते कदमों को
कोई ना संभालना.......