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umesh kulkarni

Abstract

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umesh kulkarni

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COVID 19 का चंगुल

COVID 19 का चंगुल

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COVID 19 के चंगुल में

आप सभी का स्वागत करता हूँ।,

पट्टी बांधो मुहं पर अपनी

धोबी पछाड़ के दिखलाता हूँ।


सुर में सुर मिलाना भूल गए,

सब सूरमा बनकर घूमते थे।

निकल गयी सारी हेकड़ी तुम्हारी,

कैसे अकड़के चलते थे।


गांवों के गलियारों में

ख़ुशी की लहरें चलती थी।

खेतों में हर रानी,

राजा के संग गाती थी।


शहरों को बसाते बसाते

गांवों की बलि चढ़ाई थी।

शहरों की खाक छान ने वाली,

सावन के झूले झूलती थी।


इस राह पर चलते चलते,

ये दिन तो आना ही था।

कब्रों पर महल बनाते बनाते, 

महल का कब्र तो होना ही था।


अजीब अजीब मंज़र दिखा गई, 

नामुमकिन को मुमकिन बना गई।

गुलाम बेगम बादशाह को,

फ़क़ीर बना कर चली गई।


सच्चों की जय जयकार,

झूटों की पहचान करवा के चली गई।

आस्तीन के सभी सापों को,

बेनकाब करवा के चली गई।


राजकरणियों का क्या केहने,

बिना कारन सौ कारन ढूंढते हैं।

नोट और वोटों के बीच में,

सारी दुनिया नापते हैं।


चंद पैसों के लालच में हमने,

धरती को इतना पीटा-घसीटा है।

ये बेजुबान सेहती रहेगी,

ऐसा दिन रात सोचा है।


रब से उलझने का अंजाम,

क्या उसने बतलाया नहीं।

सैलाब तूफ़ान सुनामी,

क्या उसने दिखलाया नहीं।


ये सफर तो कटना ही था,

जैसे तैसे संभल ही जायेंगे।

इससे जालिम और हैं तैयार,

उनसे कैसे बच पाएंगे।


इधर उधर की बातें छोड़ें,

गाड़ी जरा घर पे मोड़ें।

परिवार और खुद पे वक़्त बिताएं,

भगवन के आगे दिया जलाएं।


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