धारा...
धारा...
फ़िक्र-ए-ज़िंदगी नहीं,
इस ओर जुस्तजू
और उस ओर
जद्दोजहद बेइंतहा...
आप तो बेशुमार
दौलत-ए-हिम्मत
बांधकर चलते हैं...
इस क़दर आप अपने
सफरनामा लिखा करते हैं...!
पलक झपकते ही
दस्तावेज-सा ज़िंदगी
अपनी कहानी ही
बदल देती है...
फिर भी आप
ज़मीनी अफसाना लिखने की
आदत से मजबूर-सा
दिखते हैं...