माँ...
माँ...
हममें से कोई भी
भूमिष्ठ न होता,
अगर हमें
अपनी माँ की
कोख में
'जगह' न मिलती...
और 'वो' जगह
बेशकीमती है...
जहाँ हमें
अपनी माँ की
पवित्र 'छाया'
मिलती है...!
माँ के
'दुग्ध' का ऋण
हममें से
कोई भी
किसी जन्म में
परिशोध
नहीं कर सकता...।
इस संसार की हरेक
आदर्श माँ को मेरा
शत्-शत् प्रणाम...!!!
शत्-शत् प्रणाम...!!!
शत्-शत् प्रणाम...!!!
यही माँ का
सर्वोत्कृष्ट स्थान है,
जिसको हम सब
नतमस्तक होकर
प्रणाम करते हैं...!!!