दोहा -कहें सुधीर कविराय
दोहा -कहें सुधीर कविराय
माँ से बढ़कर कुछ नहीं, दुनिया सकल जहान।
जीवन उनका है सफल, जिनको इसका ज्ञान।।
मां से बढ़कर कुछ नहीं, मां बच्चे की जान।
नव पीढ़ी को अब कहाँ, होता इसका भान।।
माँ से बढ़कर कुछ नहीं, माँ ही है आधार।
माता के आंचल बिना, सूना ये संसार।।
मां से बढ़कर कुछ नहीं, ज्ञान, ध्यान, तप, दान।
माँ से ही मिलता हमें, जीवन का विज्ञान।।
माँ से बढ़कर कुछ नहीं, कहाँ समझते आप।
सहती केवल मातु है, जीवन भर संताप।।
ये दुनिया तो गोल है, हर कण का कुछ मोल।
माँ से बढ़कर कुछ नहीं, दुनिया में अनमोल।।
खुले नयन जब भोर में, आता पहला नाम।
समझ नहीं मैं पा रहा, रिश्ता है या धाम।।