दर्द
दर्द
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इतने छोटे हो क्या की,
मौत की कीमत जानते हो,
माँ-बाप के पहले,
ऊपर वाले को मानते हो।
जो चले गए उनकी,
शक्ल तो देखी थी तुमने,
और जिसकी शक्ल भी नहीं देखी,
उसे ही सब कुछ मानते हो।
दिमाग़ की गंदगी को,
बंद करो कहना बंदगी,
अपनी ख़ुशी के लिए,
मत छीनो दूसरों की ज़िंदगी।
जिसने खोया है अपना लाल,
क्या मिटा पाओगे उसका मलाल,
जिसने खोया है बाप का साया,
क्या बन पाओगे उसका हमसाया।
राख में बदल दिया,
जिसकी राखी को तुमने,
दे पाओगे उस बहन को भाई,
अगर आई वो मँगने।
इंसानियत का पाठ खुद सीखो,
और दूसरों को सिखाओ,
जिसको किसी ने नहीं देखा,
उसके नाम पर दुनिया को मत जलाओ।