गिरता लोकतंत्र
गिरता लोकतंत्र
जातिवाद और धर्मवाद से
जनता हुई बेहाल रे।
नेताओं के हर वादे
कर देते हैं खुशहाल रे।
सदा एकता खंडित होती
जाति और संप्रदाय से।
वोट में कोई भेद नहीं
सब लेने को तैयार रे ।
बाकी धर्म जाति से मंडित
एक बड़ा व्यापार है।
तुम मेरे हो ये है पराया
अलग अलग व्यवहार है।
जिसकी जितनी ऊँची कुर्सी
उतना ही वो महान है।
एक देश में एक नहीं
राजाओं के भरमार है।
संविधान को ताक पे रखकर
कहते राज हमार है।
बाबाओं की अलग विरासत
उनके अपने ठाट हैं।
रास रचाते कान्हा बनकर
मजनू जाए भाड़ में।
देश सुधारक खुद करता है
जनता संग खिलवाड़ रे।