वक्त निकलता जा रहा कैसी बेतहाशा ये दौड़ है। वक्त निकलता जा रहा कैसी बेतहाशा ये दौड़ है।
झुर्रियां यूं ही पेशानी पे नहीं होगी कई दिन,धूप-छांव ढल चुकी होगी। झुर्रियां यूं ही पेशानी पे नहीं होगी कई दिन,धूप-छांव ढल चुकी होगी।
दौड़ रहे हैं आँख मूँद कर सपनों के पीछे गिद्ध, छडूंदर, घोड़ा, हाथी, चमगादड़, तीतर।। दौड़ रहे हैं आँख मूँद कर सपनों के पीछे गिद्ध, छडूंदर, घोड़ा, हाथी, चमगादड़, ...
क्यों माया में घुटता स्वप्न, विश्वास का।। क्यों माया में घुटता स्वप्न, विश्वास का।।
नए-नए बंद अस्पताल चालू कर उनको सफल हमने बना दिये। नए-नए बंद अस्पताल चालू कर उनको सफल हमने बना दिये।
कब, कहाँ, किधर कुछ पता नहीं.... जिंदगी चल रही पर कोई ख़बर नहीं। कब, कहाँ, किधर कुछ पता नहीं.... जिंदगी चल रही पर कोई ख़बर नहीं।
कोई बहुत रूपसी लड़की का रिश्ता तो नहीं आ रहा। कोई बहुत रूपसी लड़की का रिश्ता तो नहीं आ रहा।
देख-देख चिठ्ठी को कई-कई बार छू कर चिठ्ठी को अनपढ भी “एहसासों” को पढ़ लेते थे...!! देख-देख चिठ्ठी को कई-कई बार छू कर चिठ्ठी को अनपढ भी “एहसासों” को पढ़ लेते थे...
मैं अपने आसपास देखती हूँ... देखकर लगता है कितना कुछ छूटता जा रहा है.... मैं अपने आसपास देखती हूँ... देखकर लगता है कितना कुछ छूटता जा रहा है....
मेरा कुछ नहीं पर मैं नारी हूं सब कुछ तेरा पर मैं नारी हूं। मेरा कुछ नहीं पर मैं नारी हूं सब कुछ तेरा पर मैं नारी हूं।
पूजन भजन व साधना सत्कार में, क्यों फँसा आराधना विस्तार में ! पूजन भजन व साधना सत्कार में, क्यों फँसा आराधना विस्तार में !
सारे सवाल मूक बन कर रह गये.... तेरे चेहरे के भाव को पढ़, सारे सवाल मूक बन कर रह गये.... तेरे चेहरे के भाव को पढ़,
सच में एक अवतार थी वह तुझे संवारने वाली। सच में एक अवतार थी वह तुझे संवारने वाली।
ये जिंदगी है सेल पर , जितना चाहो बेच लो, रिश्तों के टारगेट को। ये जिंदगी है सेल पर , जितना चाहो बेच लो, रिश्तों के टारगेट को।
यह मन के जुगनू हमें कभी अस्त व्यस्त तो कभी मस्त मस्त रखते हैं। यह मन के जुगनू हमें कभी अस्त व्यस्त तो कभी मस्त मस्त रखते हैं।
तमस की गुहा में क्यों, स्त्रियाँ अब जल रहीं। तमस की गुहा में क्यों, स्त्रियाँ अब जल रहीं।
आज फिर पंखे से झूल गई वह मासूम लड़की जिंदगी से हारकर निरंतर झूल रही है। आज फिर पंखे से झूल गई वह मासूम लड़की जिंदगी से हारकर निरंतर झूल रही ह...
क्या तुम अपने घर में मेरा अपना घर दे पाओगे। क्या तुम अपने घर में मेरा अपना घर दे पाओगे।
सपनों में मेरी “कविता” आयी मलिन ,शृंगार रहित चुप -चाप खड़ी मायूस पड़ी। सपनों में मेरी “कविता” आयी मलिन ,शृंगार रहित चुप -चाप खड़ी मायूस पड़ी।
आज मानव सुनता नहीं आत्मा की आवाज़, बजाता रहता है बाहरी सुर और साज। आज मानव सुनता नहीं आत्मा की आवाज़, बजाता रहता है बाहरी सुर और साज।