गोविन्द गीत(प्रथम अध्याय)
गोविन्द गीत(प्रथम अध्याय)
गीता ज्ञान अगाध है ,गीता जीवन रीत।
ईश जीव सम्बन्ध है ,गीता जीवन गीत।
शेष की शैया पर सदा ,माँ लक्ष्मी के साथ।
आसमान सदृश्य हैं ,जीवात्मा के नाथ।
आश्विन एकादश तिथि ,दो हज़ार उन्नीस
गीता दोहा रूप में ,प्रभु का हो आशीष।
धृतराष्ट्र उवाच
हे संजय मुझसे कहो , कुरुक्षेत्र का हाल
पाण्डु पुत्र क्या कर रहे ,क्या दुर्योधन भाल।1
संजय उवाच
व्यूह रचें पांडव अमित ,दुर्योधन बेचैन
निकट द्रोण के पहुँच कर ,फिर बोले ये बैन। 2
द्रुपद पुत्र ने रचा है ,पांडव सेना व्यूह।
दुश्मन सेना देखिये ,वीर विराट समूह।| 3
इस सेना में धनुर्धर ,अर्जुन भीम समान।
शूरवीर हैं सात्यिकि ,द्रुपद विराट महान। 4
धृष्टकेतु बलवान हैं ,पुरुजिता काशिराज।
चेकितान नरश्रेष्ठ है ,शैब्य ,भोज रण साज। 5
अभिमन्यु सा वीर वर ,युधामन्यु से मित्र।
उत्तमौजा महारथी ,द्रुपदसुता के पुत्र। 6
पक्ष हमारे में खड़े ,सुनलो गुरुवर आप।
वीर प्रधान सेनापति ,शत्रु सैन्य संताप। 7
अश्वत्थामा द्रोण हैं ,कृपाचार्य से वीर।
भीष्म विकर्ण ,भूरिश्रवा ,कर्ण महा रणधीर। 8
मित्र सभी मेरे खड़े ,मरने को तैयार।
अस्त्र शस्त्र परिपूर्ण सब ,निपुण युद्ध आधार। 9
सेना की रक्षा करें ,भीष्म पितामह धीर ।
भीम से रक्षित सैन्य को ,जीतेंगे हम वीर। 10
योद्धा सब तैयार हों ,शपथ धरेंगे आज।
रक्षा भीष्म की सब करें ,बाजे रण के साज। 11
दुर्योधन हर्षित हुआ ,करे भीष्म सम्मान।
शंख हाथ ले पितामह ,गरजे सिंह समान। 12
ढोल नगाड़े बज रहे ,बाजे शंख मृदंग
नरसिंघों के शोर में ,हुई शांति सब भंग। 13
श्वेत अश्व रथ पर चढ़े ,केशव अर्जुन वीर।
बजे अलौकिक शंख जब ,काँपे सब रणधीर। 14
पाञ्चजन्य की गरज है,देवदत्त की धूम।
पौण्ड्र भीम का जब बजा ,धरा डोलती घूम।15
वीर युधिष्ठिर ने किया ,विजय अनंत सघोष।
माद्री पुत्रों ने किया ,मणिपुष्पक प्रतिघोष। 16
वीर शिखण्डी ने किया ,रणभेरी का साज।
संग विराट के सात्यिकि ,खड़े हैं काशिराज।17
द्रुपदसुता के पुत्र हैं ,द्रुपद महा रणधीर।
मात सुभद्रा ने जना ,अभिमन्यु सा वीर। 18
शंख ध्वनि गूँजित हुई ,काँपे कौरव व्यूह।
दिव्य रथों से युक्त है ,पांडव सैन्य समूह।19
कपिध्वज अर्जुन देखते ,रण में चारों ओर
कौरव सेना में मचा ,युद्ध युद्ध का शोर। 20
अर्जुन उवाच
ह्रषिकेश केशव प्रभो ,हे मेरे आराध्य।
दोनों सैन्य विमध्य में ,मेरा रथ हो साध्य । 21
सम्मुख मेरे कौन हैं ,कौरव योद्धा वीर।
हृदयवेध किसका करें ,ये अर्जुन के तीर। 22
दुर्योधन हित चाहते ,कौन कौन रणधीर।
एक दृष्टी देखन चहूँ ,सम्मुख जो बलवीर। 23
संजय उवाच
सुन अर्जुन के वचन को ,कृष्ण रहे मुस्काय
दोनों सेना मध्य में ,रथ को दिया घुमाय। 24
कौरव सेना देखलो , कुन्ती के नर पुत्र।
भीष्म द्रोण वीरों सहित ,खड़े तुम्हारे मित्र।25
दादा परदादा खड़े ,ताऊ चाचा संग।
देख सभी रिश्ते वहाँ ,मुख मलीन बेरंग। 26
गुरु मामा भाई खड़े ,खड़े सुहृदय पवित्र।
ससुर ,जमाई पौत्र भी ,खड़े मित्र से पुत्र। 27
रण में सब अपने खड़े ,आहत कुंती पुत्र।
अपनों से कैसे लड़ें ,धूमिल बने चरित्र। 28
अर्जुन उवाच
ये सारे जो हैं खड़े ,लिए युद्ध की भूख।
अंग शिथिल मेरे हुए ,रहा कंठ ये सूख। 29
सरक रहा गांडीव भी ,मेरे कर से आज।
हाथ पैर भी कांपते ,मन में भ्रम का राज। 30
स्वजन सभी मेरे खड़े ,लक्षण सब विपरीत।
इनसे मैं कैसे लड़ूँ ,ये सब हैं मनमीत। 31
ऐसी विजय न चाहिए ,न ऐसा सुख जोग ।
ये जीवन धिक्कार है ,तजूँ राज का भोग। 32
जिनसे जीवन है मेरा ,जो हैं मेरे भाग।
वो ही सब रन में खड़े ,सारे रिश्ते त्याग। 33
दादा गुरु अरु पुत्र सब ,रण में सम्मुख आज।
ससुर ,पौत्र साले सभी ,पूरा कुरु समाज। 34
अटल मृत्यु चाहे रहे ,मिले त्रिलोकी राज।
महज धरा को जीतने ,नहीं युद्ध का साज। 35
धृतराष्ट्र के कुपुत्र हैं ,आतातायी भार ।
पाप मुझे भारी लगे ,इन अपनों को मार। 36
है कुटुंब मेरा यही ,हैं सब भाईबंद।
कैसे इन सबको हनु , हे आनंद निकंद । 37
यद्यपि ये सब भृष्ट हैं ,पापों की हैं खान।
कुल विनाश अपना करें ,मित्रों का अवसान। 38
मार इन्हें सुख न मिले ,लगे दोष कुल नाश।
हे केशव तुम ही कहो ,कैसे करूँ विनाश। 39
नाश अगर कुल का करूँ ,धर्मनष्ट का पाप।
धर्मनष्ट गर हो गया ,मन बाढ़े संताप। 40
पाप अगर कुल में बढ़ें ,नारी दूषित मान ।
कुल नारी दूषित अगर ,हों संकर संतान। 41
संकर संतानें सदा ,हरतीं कुल का मान ।
पिंड श्राद्ध तर्पण रहित ,पितरों का अवसान। 42
संस्कार से विहीन हों,संकर धर्मा भृष्ट।
कुलघाती करते सदा ,जाति धर्म को नष्ट। 43
धर्म नष्ट जिसका हुआ ,मिले नरक का वास।
हे केशव तुम ही कहो ,जो मन हो विश्वास। 44
बुद्धिमान होकर करें ,सुख भोगों का लोभ।
आज शोक जीवन भरा ,मन में है विक्षोभ। 45
शस्त्र रहित रण में अगर ,मृत्यु वरण हो आज।
मुझे सदा स्वीकार है ,यह कल्याणक काज। 46
संजय उवाच
शोकमग्न अर्जुन तजे ,सारे अस्त्रा शस्त्र।
रथ के पीछे जा छुपे ,पृथापुत्र थे त्रस्त्र। 47
ॐ तत्सदिति श्रीमद्भगवद्गीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायां योगशास्त्रे
श्रीकृष्णार्जुनसंवादेऽर्जुनविषादयोगो नाम प्रथमोऽध्यायः। ॥1॥