गरीबी
गरीबी
सर्दी की ठिठुरन
अलग है सबके लिए
जहाँ धनाढ़्य लोग
पहने होते हैं
स्वेटर, टोप
वहीं गरीब, मजदूर
जलती लकड़ी के
आग में
ठिठुरन से बचने का
उपाय ढूँढता है
जहाँ कोई रजाई में
घुसकर मीठे
ख्बाव बुनता है
वहीं कोई ठिठुरता हुआ
रात बीत जाने का
इंतजार करता है
कब सुबह हो
और सूरज आये
और हम थोड़ी सी धूप से
अपने शरीर को गर्मी दे पायें
सर्दी की रात
है तो वही
पर कोई आने वाला कल का
सपना देखता है
कोई सुबह ठिठुर कर
प्राण गँवा देता है
ऐसे लोगों के लिए
जीवन तो उनमें भी है
उन्हें भी जरूरत है
मौसम के हिसाब से
सब सुविधाओं की
हम जितना भी कर सके
जरूर मदद कर सके
जरूर मदद करें उनकी
दुआयें ही मिलेगी
बदले में
जो आपके लिए
अच्छा ही होगा
मन में संतुष्टि अलग
कि हम कुछ कर पायें
उनके लिए ---!