ग्रीष्म ऋतु
ग्रीष्म ऋतु
आई ग्रीष्म ऋतु अभी से मन घबराने लगा।
सूर्य देव रहेंगे अपनी चमकदार किरणों के साथ अपने रथ पर सवार
सोचकर ही पसीना आने लगा।
प्रकृति हमारा मित्र है और परमात्मा है पिता।
हर समय अपने प्रिय बच्चों की सेहत का ख्याल रखता है प्रत्येक पिता
हम बच्चे नादान हैं जो उनका कहा नहीं मानते।
ऋतु के हिसाब से जो उपजे उसको ना खाकर स्वाद के हिसाब से ही है कुछ भी खाते।
परमात्मा के प्यारे बच्चों तुमको ही है प्रकृति को भी बचाना।
यह सब तभी संभव है जब तुम्हारे पास हो सेहत का खजाना।
सेहत और स्वाद के भंडार हैं यह ठंडे मीठे फल,
तरबूज हो आम हो या हो नींबू का जल।
इन्हें तुम पियोगे तो आनंद आ जाएगा।
कोई भी खाद्य परीक्षक तुम्हारे पेट में ना जाएगा।
जो मूल रूप में ही फल तुम्हारे द्वारा खाया जाएगा।
मानसिक और शारीरिक वह दोनों बल बढ़ाएगा।