हाथों में।
हाथों में।
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सौंप दिया इस जीवन को हे प्रिय! तुम्हारे हाथों में।
उत्थान,पतन अब जो भी है, सब कुछ तुम्हारे हाथों में।।
हमने तुमको दु:ख, दर्द दिए, फिर भी तुमने चाहा है।
क्या सोचकर तुमसे प्रेम करुँ, उपकार तुम्हारे हाथों में।।
मुझमें, तुममें है भेद यही, मैं पापी हूँ, तुम गंगा हो।
समझ न सका तुम्हारी चाहत को, है प्रेम तुम्हारे हाथों में।।
मेरी कल्पना से बढ़कर भी, तुमने सब कुछ छोड़ दिया।
मैं छोड़ न सका बेवफाई को, अब तकदीर तुम्हारे हाथों में।।
जुनून अब है तुमको पाने का, इजाजत तुम्हारे हाथों में।
"नीरज" बीच मझधार में फँसा, पतवार तुम्हारे हाथों मेें।।