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KUMAR अविनाश

Abstract

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KUMAR अविनाश

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हे मेरी प्यारी गौरैया

हे मेरी प्यारी गौरैया

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हे मेरी प्यारी गौरैया

तुम मुझे लगती हो प्यारी

पर एक बात बताऊं तुमको

आशीष करता तंग मुझे

कभी कभी लगता है 

हे मेरी प्यारी गौरैया ………

तुम किस देश में उड़ गई

मेरा संदेस अब लाये कौन

मुझको गीत सुनाए कौन

आखिर तुम हो गई हो कौन 

दूसरे की डाल पर बैठी 

इतनी सहज इतनी मौन 


कभी कभी लगता है गौरैया …….

जला डालूं ये सारी दुनिया

जिसने तुमको जुदा किया

वक्त से पहले ही रूसवा किया

इस अशांत से वक़्त में 

किसी का नाम लेकर

भर दूँ मूर्त –अमूर्त ज़िक्र 

अपनी परास्त सी वसीयत में 


कभी कभी लगता है गौरैया

तुम्हारी आँखों के रंग चुरा लूँ 

उकेर दूं खाली कैनवास पर 

ढेरों चित्र उस की यादो के 

उस पुराने दिल की दीवारों के 

उखड़ते हुए नम प्लास्तर से 

फिर भर लाऊँ अक्स टूटे वादों के 


कभी कभी लगता है गौरैया 

टुकड़े कर ही डालूँ 

वर्जनाओं की चट्टानों के 

उन्ही टुकडो से तराश लूँ 

एक बुत उस दर्द-फरोश का 

उस की पत्थर सी आँखों में 

फिर लिखूँ एक नया गीत 

उसी आलमे-बेहोश का


पता है मुझको आशीष

ही एक कड़ी है

जो कभी गौरैया से होगी मेरी मुलाकात कभी


गौरैया तुम बदल गई हो

हद से ज्यादा निखर गई हो

पर दिल के किसी कोने में

एहसास ही सिहर गई हो.


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