जैसी करनी
जैसी करनी
जो जैसी करनी करता है वो वैसा ही फल पाता है
मन में जो लाता अहंकार वो अपना मान घटाता है।
किस किसने पाला अहंकार इतिहास हक़ीक़त खोल रहा
सदियाँ बीतीं लेकिन अब भी उनका सिंहासन डोल रहा।
जब हुआ महाभारत कितने लोगों ने प्राण गंवाये थे
स्वार्थ और परमार्थ के तब भेद समझ में आये थे ।
पुण्यों के पथ पर जो चलते वे नाम अमर कर जाते हैं
जो पाप कमा पापी बनते गुमनामी में मर जाते हैं।
मानव हो कि दानव हो निज धन,बल पर इठलाते हो
ललकार रहे हो ईश्वर को क्यों अपनी मौत बुलाते हो।
भले ही कलियुग में वध करने प्रभु स्वयं नहीं आएंगे
पर दानव का संहार तो मानव के हाथों करवाएंगे।
जब समाधान संकेतों में मनमोहन कृष्ण बताते हैं
तब दुर्योधन की जंघाओं को भीम चीरने आते हैं।