जब तक मीठा न हो जाए !
जब तक मीठा न हो जाए !
1 min
41
मैं जाती हूं हर रोज़
इठलाती-बलखाती
पहाड़ों की गोद से
कंदराओं के आंचल से
राह के हर रोड़ों को
ठोकर मारती
बाधाओं को ठेलती
मुसीबतों को फलांगती
अपने समंदर से मिलने
प्यासा है वो जाने कब से
इतनी विशाल ….
जल राशि पाकर भी !
बस एक बार मैं देरी से
क्या पहुंची कि ….
क्रोध पी गया
वो सारे जहां का
पल ही में हो गया खारा
तब से मैं रोज़ जाती हूं
उससे मिलने
पर कब तक ?
जब तक वो ….
मीठा न हो जाए !