काफ़ी हो चुका
काफ़ी हो चुका
बस !
काफ़ी हो चुका
पीठ के उपर लहरें गुजर चुकी
फिर भी ये पीड़ा ?
बस !
थक चुका हूँ
लडा नहीं जाता
कब का कबर सबर का खोद के
इसी ताक में बैठा हूँ
कि बस !
यही होगी वो आखरी जंग
मेरे दुखों और सहनशीलता के बीच
जहाँ जंग जीतने को ऐंठा हूँ
अगर जीतूँ ये समर दुखों पर
तो बस !
जीत ही काफ़ी है
अगर हारूँ तो इस कदर
के प्राण न्योछावर कर तरूँ
सहनशीलता का एक बूंद भी
मेरे शरीर में शेष न धरूँ
कब्र तैयार रखा है मैंने
उसमे जा, आराम करूँ
बस !
झेला नहीं जाता
काफ़ी हो चुका
काफ़ी हो चुका।