कल
कल
कोई मेरी राहों में गुनगुना रही थी
बहुत ढूंढा उसे (जिंदगी) उधर इधर
वो मुझ से आँख मिचौली खेल रही थी
एक अरसे के बाद हाथ लगी वो मेरे
जब मिली मुझे तब जाकर आया करार
वो मुझे, मैं उसे समझा रहा था
क्यूँ खफा है हम एक दूसरे से
मैंने भी पूछ लिया उससे - कमबख़्त क्यों इतना दर्द दिया तूने
वह मुस्कुराकर
मुझे सहला कर बोली
जिंदगी में इतना आसान होता क्या है पगले
कल और एक दिन
कल और एक इम्तिहान है