*कलम की आवाज*
*कलम की आवाज*
कलम की आवाज़ को कोई दबा सकता नहीं।
जितना इसको रोकोगे, ज्यादा ही शोर मचाएगी।
कोई तूफां कोई आँधी, इसको रोक नहीं पाई।
कितनों ने गला दबाया, पर आवाज न इसकी दब पाई।
कलम की ताकत ने ही देश की ताकत का गुणगान किया।
पावन पुण्य ऋचाओं का, वेदों में गुणगान किया।
कलम की ताकत को हर युग में, सत्ता ने धमकाया था।
जब भी ऐसा हुआ, कलम ने ज्यादा शोर मचाया था।
अलग-अलग सत्ताओं के, हम वर्षों तक आधीन रहे।
देश पे जान लुटाने वाले, नहीं कभी आधीन रहे।
कलम की ताकत ने, इतिहासों में अलख जगाई थी।
एक कवि ने पृथ्वीराज को, एक राह दिखलाई थी।
उसे समझकर राजा ने, गौरी का काम तमाम किया।
भारत भू को विश्व पटल पर, एक नया सम्मान दिया।
इतिहासों में नाम अमर है,कवि चन्दबरदाई का।
माटी की खातिर मिट जाने वाले उस शैदाई का।
कवि कलम की आग, तेग तलवार से ज्यादा तीखी है।
जितना इसको कुचला है, उतनी ज्यादा ये चीखी है।
चीख- चीखकर लोगों में, इक जज़्बा नया जगाया था।
अंग्रेजी शासन तक इसकी, ताकत से थर्राया था।
आज जरूरत आन पड़ी है, धार कलम की तेज करो
आज देश की व्यवस्था पर, सीधा -सीधा खरा लिखो।