कलमकार हूं कलमकार का सच्चा धर्म निभाता हूं
कलमकार हूं कलमकार का सच्चा धर्म निभाता हूं
कलमकार हूँ, क़लमकार का , सच्चा धर्म निभाता हूँ।
राजनीति की नज़रों मे,
जब खोट दिखाई देता है।
नेतओं को हर क़ीमत पर,
वोट दिखाई देता हैं।
तब क्रोध होकर कागज पर,
अंगारे उपजाता हूं।
क़लमकार हूँ, क़लमकार का सच्चा धर्म निभाता हूं।
जब भारत की सेना पर,
पत्थर फिकवाये जाते हो।
औऱ शेर के भोजन को,
जब श्वान छीनकर खाते हों।
तब ऐसी घटनाओं से
ह्रदय मे ज्वार जगाता हूँ।
क़लमकार हूँ, क़लमकार का सच्चा धर्म निभाता हू।
चोरों और पुलिस वालों में,
जब यारी हो जाती है।
अपराधों पर चुप रहने,
की बीमारी हो जाती है।
तब मैं कलम उठा कर
वर्दी का इमान जगाता हूं।
कलमकार हूं कलमकार का सच्चा धर्म निभाता हूं।
सत्ता की करतूतों से,
भारत का सैनिक रोता है।
और देश का कुलभूषण,
पाकिस्ता मैं होता है।
तक छप्पन इंची सोने को,
ताकत याद दिलाता हूँ।
कलमकार हूं कलमकार का सच्चा धर्म निभाता हूं।