" कर्णधार "
" कर्णधार "
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तुम चाहो तो आसमां को धरती से मिला दो
तुम चाहो तो हवाओं का रुख पलट दो
तुम अपने इशारों पर चला सकते हो दुनिया को
तुम समुन्दर से मोती निकाल सकते हो
जरुरत भर है बस खुद को पहचानने की
सिर्फ एक क़दम आगे बढ़ाने की
फिर तुम जो चाहो वो कर सकते हो
माँ के "लाड़ले " हो तुम
इस घर का नाम रोशन कर सकते हो
अब भी वक्त है खुद को जानो तुम
आने वाले वक्त के कर्णधार हो तुम
इस तरह फज़ूल के दिखावे में
खुद को खत्म न करो तुम
सिर्फ और सिर्फ आगे बढ़े तुम।