कुछ भी खास नहीं है तुम में
कुछ भी खास नहीं है तुम में
कुछ भी खास नहीं है तुम में, फिर भी अच्छे लगते हो,
चाहे कितना भी झूठ बोलो, फिर भी सच्चे लगते हो।
हर बार दिल तुम से मिलकर, तुम्हारी ही बातें सोचे,
कुछ भी उम्मीद नहीं है तुमसे, फिर भी अपने लगते हो।
रातों को जागने का, जो सिलसिला शुरू किया था,
कुछ भी बाकी नहीं उसमे अब, फिर भी हम में हँसते हो।
खत्म किस्से जब जवां होते, फिर धुआँ उठ जाता,
कुछ भी आग नहीं उसमे अब, फिर भी ईंधन भरते हो।
इश्क अपना नहीं मरने वाला, ये यूँ ही मचलता रहेगा,
कुछ भी राज़ नहीं इसमे, फिर भी तुम संभलते हो।