कविता से प्यार
कविता से प्यार
मुझे अपनी कविता से प्यार हो जाता है
मेरी कविता में जब ये शब्द गुनगुनाते हैं
जब पेड़ों में पंछी कोई मिठा गान सुनाते हैं
जब मासूम से बच्चे के हाथ माँ को पास बुलाते हैं
जब प्रकृति के सुंदर नजारे मन को भाते हैं
तब मुझे अपनी कविता से प्यार हो जाता है
जब तपती जमीं को सावन आके भिगाता है
जब मन्दिर में श्रद्धा के पुष्प कोई चढ़ाता है
जब तन्हाई में कोई उदास होके गाता है
जब उदासी का वो संगीत भी दिल को छू जाता है
तब मुझे अपनी कविता से प्यार हो जाता है
जब परदेस से कोई बरसों बाद आता है
जब किसी के आने की खुशी में घर को
कोई महलों की तरह सजाता है
जब किसी को सरमाते देख चाँद भी शरमाते हैं
जब प्यार से सर पे दुपट्टा ओढ़ा जाता है
तब मुझे अपनी कविता से प्यार हो जाता है
जब काँटों के बीच एक फूल मुस्काता है
जब चाँदनी के पास एक तारा टिम -टिमाता है
जब भोर होते ही पंछियों का स्वर
कल- कल ध्वनि में गाता है
जब सूरज की पहली किरण के आते ही
घनघोर अँधेरा मिट जाता है
तब मुझे अपनी कविता से प्यार हो जाता है
जब महफ़िल में कोई शायर अपनी शायरी सुनाता है
जब किसी की तारीफ़ में हर सुंदर नजारा कम पड़ जाता है
जब किसी का हर कलाम गीत सा लगने लग जाता है
जब मेरी पंक्तियों पर कोई भी
थोड़ा सा ही, पर मुस्काता है
तब मुझे अपनी कविता से प्यार हो जाता है।