"माँ स्वरूपा स्री "
"माँ स्वरूपा स्री "
चामुंडा का रूप भी मैं
रक्त से भीगी काली भी हूँ
ज्ञान से लदी सरस्वती भी मैं
अभिमान से भरी दुर्गा भी हूँ।
राधा के नैनन की प्रतीक्षा मैं
जले सती में वो ज्वाला भी हूँ
चामुंडा का रूप भी मैं
रक्त से भीगी काली भी हूँ।
जगत जननी कहते मुझको
मैं जगत कल्याणी भी कहलाती हूँ
मीरा का प्रेम पद भी हूँ मैं
उग्र को की करालिका ने;
वो तपस्या भी हूँ
चामुंडा का रूप भी मैं
रक्त से भीगी काली भी हूँ ।
ब्रह्माण्ड को एक क्षण में उजाड़े.
मैं वो अदृश्य साया भी हूँ
सर्व संसार भीतर समाये बैठी
मैं एक साधारण सी नारी हूँ
चरित्र लांछन सहा जिसने
वो चरित्रवान मैं वैदेही हूँ
चीर हरण चल-हाथ जोड़े
खड़ी सभा में,
वो द्रुपद-सुता भी मैं हूँ
चामुंडा का रूप भी मैं
रक्त से भीगी काली भी हूँ।
मैं हर वो तनया हूँ
जो दुर्गा के रूप में जन्मी है
कलयुग के इस दौर में जो चंडिका बनी बैठी है
चामुंडा का रूप भी है वो
रक्त से भीगी काली भी है।।