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Phool Singh

Drama Inspirational

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Phool Singh

Drama Inspirational

मैं इंसान

मैं इंसान

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न मैं हिंदू न मैं मुस्लिम

मैं अदना-सा एक इंसान

मित्र प्रेम भाव को हृदय रखता, काम से रखना अपना काम।।


जात-पात न मेरी पूछो

उससे मुझको है क्या काम

ज्ञान विज्ञान से सीखता जाता, कुछ अनुभव भी देता मुझको ज्ञान।।


कर्मठ हूं मैं कर्म ही करता 

परिणाम न होता मेरे हाथ

जो मिल जाता रख लेता हूं, मैं परिवार का रखता अपने ध्यान।।


मान-सम्मान की चाह भी होती 

हो थोड़ा धन भी मेरे पास

कर्म-धर्म भी कर लेता हूं, सदा जिम्मेदारियों निभाती मेरा साथ।।


मोह-माया मुझे खूब लुभाती

रोज सपने दिखाती लुभावने खास

काम-क्रोध भी मेरे हृदय जगते, कुछ अनजाने में हो जाते पाप।।


ईर्ष्या-द्वेष भी कभी पनपते

होती शांति-समृद्धि मुझको आशा

होता आगे निकलने की होड़ में शामिल, क्यूं भूल जाता हूं कितना खास।।


सदा करता रहा मैं तेरा-मेरा

क्यूं स्वयं का रहा न मुझको भान

सुख-दुःख में सदा उलझा रहता, थोड़ा परिवार का मिलता मुझको साथ।।


बस राम-रहीम का नाम न जपता

वक्त न उसका मेरे पास

आत्मा-परमात्मा का मिलन कराता, कल्याण के मेरे है जो द्वार।।


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