मैं नदी हूँ
मैं नदी हूँ
मैं नदी हूँ,
पहाड़ो से उतरी हूँ,
अल्हड़ मदमस्त शोख हूँ,
जीवन से भरपूर हूँ,
निश्चल पवित्र शीतल हूँ,
मैं नदी हूँ,
सबकी प्यास बुझाती हूँ,
खेती के काम आती हूँ,
पेड़ो का आधार हूँ,
जीवन का संचार हूँ,
मै नदी हूँ,
कितनी सभ्यताओं की साक्षी हूं
कितनी दुर्गमता झेली हूँ,
युग युग से बहती रहती हूँ,
कभी नहीं आराम न थकती हूँ,
मैं नदी हूँ,
आज मैं संकटग्रस्त हूँ,
शायद मानव से अभिशप्त हूँ,
निज शीतलता, पवित्रता तज दी हूँ,
तुमको पावन करते करते,
मैं खुद को खो बैठी हूँ,
मैं नदी लुप्त हो रही हूँ।