मेरा परिंदा
मेरा परिंदा
किसी रोज वो परिंदा आये, तो हमें भी बताना,
दिख जाए तो दिखाना, मिल जाए तो मिलाना।
बहला-फुसला कर हम उसे अपने साथ ले आएंगे,
नहलायेंगे-खिलायेंगे-सहलायेंगे।
सीख लेंगे उससे, हवाओं में लहराना,
सीखा देंगे उसे हमारा नाम दोहराना।
वह ज़िद करेगी, पर हम उसे जाने ना देंगे,
उसके उड़ जाने के डर से, उसे पिंजरे में बांध देंगे।
बाहर उड़ जाने को, वो बहुत झटपटायेगी,
अपनी रोनी सूरत से हमारे दिलों को पिघलायेगी।
उसकी रोती सूरत देख हममें करुणा आ जायेगी,
पिंजरा खोलेंगे हम, और वह उड़ जायेगी।
आसमान में उड़ना उसे अब अच्छा लगेगा,
हमारे नाम से ज्यादा उसे पंखों से जुड़ना सच्चा लगेगा।
हम बार बार बुलाएँगे पर वो वापस ना आयेगी,
बादलों की ओट में वह कहीं छुप जायेगी।
उसके उड़ जाने पर भी, हम खुद में अहंकार भरेंगे,
और आसमां को निहारते हुए 'दूसरे परिंदे का इंतज़ार करेंगे'।।